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अंत:करण का स्वरूप
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अंत:करण का स्वरूप
दादाश्री : खुद मरता ही नहीं। जो अहंकार है, वह मरनेवाला है। क्योंकि वह 'मैं हूँ, मैं हूँ' बोलता है। जिसे अहंकार नहीं है वह खुद ही है, वह खुद हो गया है और खुद कभी मरता ही नहीं। अहंकार है उसे मरने का फीअर (भय) है। अहंकार से ही क्षण में ऍलिवेट (उन्नत) होता है और क्षण में डिप्रेस (उदास) होता है। अहंकार चला गया, फिर कभी डिप्रेस नहीं होता।
भगवान कहते हैं कि 'दुनिया में कोई नहीं मरता।' और सब लोग रोते है। क्यों? लोग बोलते हैं कि 'हमें तो ऐसा नहीं दिखता है।' तो मैंने कहा कि "हमारी आँख से देखो, 'ज्ञानीपुरुष' की दृष्टि से देखो।" हमने देख लिया कि इस दुनिया में कोई मरता ही नहीं है। तो लोग रोते है कि 'हमारा भाई मर गया, हमारा भतीजा मर गया।' अरे, खाली परेशान क्यों होते हो? सिर्फ अवस्था का विनाश होता है, मूल वस्तु सनातन है। तुम सनातन हो तो तुमको कुछ नहीं होता और तम अवस्था रूप हो गये तो तुम्हारा विनाश होता है।
बात को समझने की जरूरत है। मैं वैज्ञानिक बात कहता हूँ, वैज्ञानिक यानी जो 'है वह है ही' और 'नहीं है, वह नहीं है' ऐसा बोलता हूँ। जो 'नहीं है' उसे हम 'है' नहीं बोलेंगे। आप बोलें कि 'ऐसा कुछ तो होगा'। तो भी हम बोलेंगें कि 'वह नहीं है'। फिर आपको कितना भी बुरा लगे तो भी हम नहीं है', उसे 'है' नहीं बोलेंगे। क्योंकि हमारी जिम्मेदारी है। हम जो बात बोलते हैं, हम बाईस साल से जो भी बोलते हैं, उसमें से एक बात आप पूछे कि हमें आप यह बोले हैं तो इसका खुलासा दो, तो हम खुलासा दे सकते हैं। हम हरेक चीज़ का खुलासा देने को तैयार हैं। यह जगत स्वयं पज़ल हो गया है! हमने खुद देखा है कि कैसे पज़ल हो गया है।
प्रश्नकर्ता : अंग्रेजी में सोल (soul) कहते हैं, वही आत्मा है?
दादाश्री : वे लोग सोल (soul) बोलते हैं, मगर समझते नहीं है कि सोल (आत्मा) क्या चीज़ है। आत्मा अलग वस्तु है। आत्मा
तो प्रकाश है। मगर उसे आत्मा ऐसा सिर्फ नाम दिया है। आत्मा चीज़ है। चार वेद पढ़ें तो भी उनमें आत्मा नहीं है। सब लोग आत्मा की तलाश करते हैं। मगर आत्मा स्थूल चीज़ नहीं है। वह सक्ष्म चीज़ नहीं है। वह सूक्ष्मतर चीज़ भी नहीं है। आत्मा तो सूक्ष्मतम चीज़ है। पुस्तक तो स्थूल है, शब्द भी स्थूल है। पुस्तक में तो स्थूल बात ही है। सूक्ष्म, सूक्ष्मतर, सूक्ष्मतम बात तो इसमें है ही नहीं। तो किधर आत्मा को तलाश करने का? गो टु 'ज्ञानी', 'ज्ञानीपुरुष' के पास जाओ, वहाँ सब कुछ मिलेगा।
अहंकार, ध्यान में नहीं किन्तु क्रिया में प्रश्नकर्ता : मुझसे ध्यान ठीक से नहीं होता। ध्यान कैसे करना चाहिए? मुझे सीखना है।
दादाश्री : ध्यान आप करते हो या दूसरा कोई करता है? प्रश्नकर्ता : मैं करता हूँ। दादाश्री : कभी आपसे ध्यान नहीं भी होता ऐसा होता है? प्रश्नकर्ता : हाँ, ऐसा होता है।
दादाश्री : उसका कारण है। जब तक 'आप चंदूभाई है' तब तक कोई भी कार्य सही तरीके से नहीं होगा। आप चंदूभाई है वह बात कितने प्रतिशत सही होगी?
प्रश्नकर्ता : शत प्रतिशत।
दादाश्री : जब तक 'मैं चंदूभाई हूँ' रोंग बिलीफ है तब तक 'मैंने ये किया, मैंने वो किया', ऐसा अहंकार है। जो भी कार्य करो, उसमें कर्तापन का अहंकार होगा और कर्तापन का अहंकार बढ़ेगा उतने भगवान दूर चले जायेंगे। अगर आपको परमात्मापद प्राप्त करना है तो ज्ञानी के पास ज्ञान लेने से आपका अहंकार खत्म होगा तब आपका काम होगा।