Book Title: Antakaran Ka Swaroop
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 21
________________ अंत:करण का स्वरूप अंत:करण का स्वरूप ध्यान किसी को भी करना नहीं आता। जो ध्यान करने में आता है वह अहंकार से है। इसलिए उसे सही ध्यान नहीं कहा जाता। उसे एकाग्रता कहते है। जहाँ अहंकार नहीं है वहाँ ध्यान है। ध्यान अहंकार से नहीं हो सकता। ध्यान तो समझने जैसी चीज़ है, वह करने की चीज़ नहीं है। ध्यान और एकाग्रता में बहुत अंतर है। एकाग्रता के लिए अहंकार की जरूरत है। ध्यान तो अहंकार से निर्लेप है। अहंकार बढ़े या कम हो तो वह आपके ख्याल में रहता है या नहीं? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : अहंकार बढ़े या कम हो वह ख्याल में रखे उसका नाम ध्यान कहा जाता। आर्तध्यान और रौद्रध्यान में भी अहंकार नहीं होता। प्रश्नकर्ता : धर्मध्यान में अहंकार रहता है या नहीं? दादाश्री : उसमें भी अहंकार नहीं है। ध्यान में अहंकार नहीं होता है, क्रिया में अहंकार होता है। प्रश्नकर्ता : रौद्रध्यान और आर्तध्यान में अहंकार निमित्त तो बनता है न? दादाश्री : निमित्त अकेला ही नहीं, किन्तु क्रिया भी अहंकार की है। क्रिया वह ध्यान नहीं है। किन्तु क्रिया में से जो परिणाम उत्पन्न होता है वह ध्यान है। और जो ध्यान उत्पन्न होता है उसमें अहंकार नहीं है। आर्तध्यान हो गया, उसमें 'में आर्तध्यान करता हूँ' ऐसा यदि न हो तो उस ध्यान में अहंकार नहीं होता। अहंकार का दूसरी जगह पर 'उपयोग' होता है तब ध्यान उत्पन्न होता है। प्रश्नकर्ता : ध्यान में अहंकार नहीं है, कर्ता नहीं है, तो फिर कर्म किस तरह से बंधा जाता है? दादाश्री : आर्तध्यान होने के बाद मैंने आर्तध्यान किया' ऐसा मानता है वहाँ कर्ता होता है, और उसी का बन्धन होता है। प्रश्नकर्ता : आपने कहा था कि ध्येय तय करने के बाद खुद ध्याता होता है, तब ध्यान उत्पन्न होता है। उसमें अहंकार की जरूरत नहीं है? दादाश्री : उसमें अहंकार हो या ना भी हो। निरअहंकार ध्याता हो तो शुक्लध्यान उत्पन्न होता हो। नहीं तो धर्मध्यान या आर्तध्यान या रौद्रध्यान उत्पन्न होता है। प्रश्नकर्ता : यानी ध्यातापद अहंकारी हो या निरअहंकारी हो, लेकिन उसके परिणाम स्वरूप जो ध्यान उत्पन्न होता है उसमें अहंकार नहीं है? दादाश्री : हाँ ! और शुक्लध्यान परिणाम में जब आयेगा तब मोक्ष होगा। प्रश्नकर्ता : ध्येय तय होता है उसमें अहंकार का हिस्सा होता है क्या? दादाश्री : ध्येय अहंकार ही निश्चित करता है। मोक्ष का ध्येय और ध्याता निअहंकारी होता है तब शुक्लध्यान होता है। प्रश्नकर्ता : धर्मध्यान के ध्येय में अहंकार की सूक्ष्म उपस्थिति होती है क्या? दादाश्री : हाँ, होती है। अहंकार की उपस्थिति के बिना धर्मध्यान हो ही नहीं सकता। प्रश्नकर्ता : आर्तध्यान, रौद्रध्यान और धर्मध्यान उसे पुद्गल परिणति कह सकते है क्या? दादाश्री : हाँ, उसे पुद्गल परिणति कही जाती है और शुक्लध्यान वह स्वाभाविक परिणति है। प्रश्नकर्ता : यानी शुक्लध्यान वह आत्मा का परिणाम है न?

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