Book Title: Angulsattari Author(s): Munichandrasuri Publisher: Mahavir Jain Sabha View full book textPage 7
________________ सहसगुणेऽसीलक्खा कोडीओ जोयणाण दस हुंति। चउसयगुणणे कोडीलक्ख बिसत्तरि अस्सीसहसा ॥२१॥ अर्थ-द्वारिका अथवा अयोध्या नवजोजन पहोली छे, बारजोजन लांबी छे, तो बारनवां अठोत्तरसो १०८ योजन थाय तो ते योजन सहस्र २ गुणा कीजे दसकोटीयोजन अने एसीलाखयोजनथाय. चारसो गुणा करतां केटलुं थाय ते कहे छे. एक प्रमाणांगुल योजनने | चारसो गुणाकरता एकलाख साठसहस्र योजन होय. १०८ योजने एकलाखसाठसहस्रगुणा किजे एककोटिबहोत्तेरलारखएसीहजार योजन थाय. ॥ २१ ॥ पूर्वोक्त मान लाववा ग्रंथकार स्वयं स्वीकारे छे. ते निचे प्रमाणे. एयं च पुण पमाणं पिहला नव जोयणाणि नयरीओ। बारस दीहा तत्तो दुन्हं अंकाणमन्नुन्नं ॥२२॥ || गुणणे अट्ठहियसयं जायंतो एग जोयणगएण। गणियपएणं गुणिए पुव्वुत्तेणं इमंमि भवे ॥२३॥ अर्थ-इदं ए पूर्वोक्तं तु पुनःवली प्रमाणकिम् ? यथा द्वारिकानगरी नवयोजन पहोली छे. अने बारजोजन लांबी छे, तोएबन्ने अंकोने अन्यो अन्य गुणतां १०८ थाय ततः एकयोजनगत गणित प्रमाण छे जे दसलक्ष योजन अने एकलाखसाठसहस्ररूपने १०८ गुणा कीजे इदं पूर्वोक्तं भवेदिदं ए पूर्वोक्तं १०८०००००० अने १७२८०००० होय ॥ २२ ॥ २३ ॥ एयं च अइपभूयं नगरपमाणं न जुज्जए जम्हा । तम्हा पमाणअंगुल विक्खंभपमाणओ गिज्ज ॥२४॥ अर्थ-ए पूर्वोक्त नगर प्रमाण अतिप्रभूतं अतिघणु तेह माटे योग्य नहि माटे प्रमाणांगुलन जे विष्कंभप्रमाण तेहज ग्राह्यं तेज ग्रहण करवू ॥२४॥ वली ते बन्ने मतने विषे दोष देखाडे छे. 5 तह कूणियस्सरन्नोसाहियदक्खिणदिसस्स वेअड्ढे।परिमियजीविअकालस्स जुज्जए कह णुगमणं ति॥२५॥ अर्थ-तथा कोणिक राजा केवो छ साधी छे दक्षिण दिशा जेणे. वली केवो छे परिमित आयुष छे जेहनु. इति वित्त एहवाने वैता Shree SudharmaswamiGyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyashaldar.comPage Navigation
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