Book Title: Angulsattari
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Mahavir Jain Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ TEACAARCHIRGAMROPERTERA अर्थ-तथा वली पर्वत वैताब्यादिक भरतक्षेत्रने विषे छे, ते पर्वत उपर पासे जे पुरादिक ते सर्वत्र छे.॥४०॥ वग्गागयाण तुरियाईणं जह मज्झिमेण भंगेणं। मुल्लगणणा तह जणो मज्झिममाणेण पित्तव्वो॥४१॥ अर्थ-यथा जेम वर्गागतानां समुदाये आव्या तुरयाइण घोडादिक तेहY मध्यम मूल गणीए उत्कृष्टे अने जघन्ये न गणीए. तथा० तेम जनलोकन मध्यममान लेधु, उत्कृष्ट तो पांचसो धनुष्य प्रमाण, अने जघन्यतो बे हस्तन मान लेवू. ॥४१॥ मध्यम भागे केटलं होय ते कहे छे. पंचन्हसयाणद्धं सयाई अड्डाइयाइं इह हुंति । पिहुलत्तं पुण पंचमभागे सयगस्समद्धं च ॥ ४२ ॥ अर्थ-पांचसे धनुष्यन अर्ध अढीसो धनुष्य एटलं उच्चपणुं होय. पांचसें धनुष्यनो पांचमो भाग एकसो धनुष्य, तेहनु अर्ध पचास धनुष्य, एटलुं पहोलपणे होय. ॥ ४२ ॥ ते मध्यममानना मनुष्यनुं प्रतरकरतां केटलं थाय ते कहे छे. दुन्हं परुप्परगुणणे अंगाणं हुंति बारस सहस्सा पंचहिं सएहिं अहिआ एरिसमाणेण ठविअव्वो ॥४३॥ | लोगो पुरेसु गामेसु वा वि जं सवसंगहो एवं । होइ कओ संकलणा वि होइ पाणीसु एमेव ॥४४॥ अर्थ-पचाश धनुष्य अने अढीसें धनुष्य ए बेहं आंक परस्पर गुणीए तो बार हजार अने पांचशो होय एहवे माने लोक पुरने विषे गामने विषे स्थापयु, जेह कारणे, एवं ए प्रकारे सर्व संग्रह होय, पाटीने विषे संकलना कहि ते लेखु किधुंएमज होय.॥४३-४४॥ जाओ पुण सेसाओ कोडीओ तासु जाइं एआई। गंगाइआण सलिलाई तेसु दीवा य मायंति ॥४५॥ अर्थ-तो पुनः वली जे शेष बार कोटी गाउ छे तेहने विषे जे गंगादिकनां पाणी ते पाणीने विषे जे द्वीप छे तेह माय. ॥ ४५ ॥ 2 शिष्य पृच्छति पुनः निश्चे भूमि थोडी लोकने विषे सुख केम होय ? ते उपर कहे छे. कालो य चक्किकालो अच्चंतसुहा दुमाइपउरो । ता थोवे वि विभागे सुहिया गामादओ हुंति॥४६॥ Shree Sur haswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16