Book Title: Angarak
Author(s): Yogesh Jain
Publisher: Mukti Comics

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Page 5
________________ प्रिय अंगारक ! अबकी बार ऐसे आभूषण बनाओ, जैसे अब तक किसी ने न बनाये हों अंगारक. से अजी उठो! सुबह काम कर रहे हो, दस बज गये, भोजन कर लो। 29. और राजा ने सोना व अमूल्य नगीना देकर विदा किया । इस तरह अंगारक सोना व नगीना लेकर अपने घर गहने बनाने लगा, हाँ! हाँ! अभी आता हूँ । जैसी आपकी इच्छा. वह भोजन के लिये हाथ- - मुँह धोने घर के बाहर आता है।.

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