Book Title: Angarak
Author(s): Yogesh Jain
Publisher: Mukti Comics

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Page 9
________________ 33. अंगारक. पास आने पर जब अशारक गाली-गलौच करने लगा,तो उपसर्गजयी-मुनिराज ने शान्तिपूर्वक मौन धारण कर लिया। अरे-चुप क्यों हो गया बता भेश नगीना कहाँ नहीं | तो.. लो ये-चरवो मज़ा. परन्तुण्डा पेड़ पर जालगा अरे वाह! ये नगीना ऊपरपेड़ से गिरा. परन्तु यही -- बिल्कुल यही.- मेरा नगीना -- और मोरनी वही जो मेरे आँगन पर आकर बैठता है.. भारी बात समझकर अंगारक को बहुत पश्चाताप हुआ | क्षमा करें भगवन! मुझसे भारी अपराध हुआ.

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