Book Title: Angarak
Author(s): Yogesh Jain
Publisher: Mukti Comics
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ अंगारक के प्रालेख - डॉ. योगेश जैन. चित्रांकन - त्रिभुवन सिंह सहयोग - सरोज वी० एम० आज सेठानी ईर्ष्या से जली-भुनी जा रही थी और पड़ोसिन को नीचा दिखाने की सोच रही थी, तभी उसके पति ने प्रवेश किया| १ अरीभागवान ! सुनो अभी तक भोजन नहीं.. मझसे मत बोलो तुम्टारी नौकरानी हूँ? सोइया हूँ? TIMIT चन्द्रमुखी से ज्वालामुखी बनी पत्नी की। खुशामद करते हुये भोलू बोला - अरी बावली ! कैसी बातें करती हो? नारी के गले की शोभा तो मधुर वाणी, व्यवहार और उसका शील है! रानी कुछ कहो भी, बात क्या हुई?कहे चिना हमें कैसे पता चले ? त्या का मुहल्ले की सारी औरते तो शेजू . नये-नये गहने पहने और मैं बस वही सालों पुराना हार, चूड़ियाँ - | तुम कुछ सभूकतेलो ? बिना सुन्दर गहने परने समाज में सम्मान नहीं मिलता Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 26 मुक्ति कॉमिक्स तुम्हें क्या हो गया है ? भैस के गले में बँधी मॉकल की तरह गूले में हार बाँध लेने से समाज में इज्ज़त लोती है म उपदेश नटी ठार-चाहिये हार.. फूलस्वरूप पत्नीपीड़ित भोलूराम सर्राफ की दुकान पर जा पहुंचा। 3552 सेठ जी! कोई ऐसा सुन्दर हार दिखाओ जो किसी के पास न टो। अच्छा ! बैठो, लाता हूँ। ऐसा हार,जो संसार में कोई न बना सके -- ये लो बस एक टी है। अंगारक ने बनाया था, जो राजा का विशोष सुनार था, पर अब वह कभी नहीं बनायेगा - -18 पर ऐसा क्यों? पूरी बात कहोन] Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ और अंगारक की कथा सुनकर भोलू अपने घर आया लो प्यारी संसार का सबसे सुन्दर हार.... दूसरे दिन जब हार पहनकर उत्सव में गई अंगारक. ये कितनी निर्दयी दृष्ट औरतें.. | मेरे हार कंगन को कोई देख ही नहीं रहीं.... ना कोई पूछ रही.. दु:खी सेठानी ने गहने दिखाने की एक तरकीब निकाली। अपने घर में स्वयं ही. आग लगाकर आग- आग... बचाओ- बचाओ... 27 वाह ! सचमुच कितना सुन्दर... तुम बहुत अच्छे हो Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 28 मुक्ति कॉमिक्स तभी एक महिला ने पू. . वाह सेठानी ! ये कंगन हार बहुत सुन्दर हैं; कब खरीदा, फिसने बनाया .... अरे मुई! अब तक कहा थी? जब सारा घर जलकर राख हो गया. तब हार कंगन की तारीफ कर रही है। सत पर बताओ एसे गहने अब तकनर The ०० आल! जिन गहनो के शौक ने मेरे भुख-चैन छीने , यहाँ तक घर में भी आग लगा दी, और तो और इसफो" बनाने वाला अंगाखा अरी ! ये अंगारक कौन है? जश मैं भी तो भु: इस देश के राजा के यहाँ अत्यन्त बुद्धिमान प-चतुर अंगारक नाम का एक सुनार था। एक दिन राजा ने आदेश दिया Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रिय अंगारक ! अबकी बार ऐसे आभूषण बनाओ, जैसे अब तक किसी ने न बनाये हों अंगारक. से अजी उठो! सुबह काम कर रहे हो, दस बज गये, भोजन कर लो। 29. और राजा ने सोना व अमूल्य नगीना देकर विदा किया । इस तरह अंगारक सोना व नगीना लेकर अपने घर गहने बनाने लगा, हाँ! हाँ! अभी आता हूँ । जैसी आपकी इच्छा. वह भोजन के लिये हाथ- - मुँह धोने घर के बाहर आता है।. Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुक्ति- कॉमिक्स पर जैसे ही घर के बाहर आता तो वह देखता है कि अरे वाह ! छ्य भाग हमारे, अतिथि - पूजासत्कार का महान । सुअवसर / मुनिराज! लगता है साक्षात् । मोक्षमार्ग ही हमारे द्वार पर चलकर आ रहा हो महान पुष्योदय से अंगारफ पत्नी साढत मुनिराज को पड़गालन कर आहार देगका तभी घर के आंगन में वृक्ष पर बैठा भूखामेर नीचे उतर आता Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 31 · अंगारक, नवधा भक्तिपूर्वक आहारदान के बाद अंगारक स्वयं भोजन करता है। और फिर अब गहने बनाने आता है तो-- लाया में लुट गया -.. अब क्या होगा - अभी तो यही था.. अरे ! क्या हो गया ? इतनी सर्दी में भी पसीना -. क्या ढूंढ हे हो ? चुप रह! मैं तो मर जाऊँगा , क्या मुँह दिखाऊँगा..| अभी तो यहीं रखकर गया था. राजा का बेशकीमती नगीना,मैं यहीं रखकर गया था नहीं मिला तो भर आऊंगा ... साय! क्या कर रे हो? अब क्या होगा। Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 32 मुनिराज के अलावा तो अभी तक यहाँ कोईनहीं आया, लगता है वही नहीं-नहीं वही पापी अधम धूर्त.. जो मेरे नगीने को.. मुक्ति-कॉमिक्स और अत्यन्त कुछ होकर अंगारक मुनिराज को मारने जंगल की ओर चल दिया।। अरे ! तुम्हें पता है कि तुम क्या कह रहे हो ? अचौर्य| महाव्रत के धारी मुनिराज क्या कभी ऐसा अधम कार्य कर सकते हैं ? आह! मैं क्या सुन रही हूँ ? अरी धरती ! तू फट क्यों नहीं गई.. | काश! आज मैं बहरी होती । अरे ! वह देखो ! वही है धूर्त चोर देखता हूँ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 33. अंगारक. पास आने पर जब अशारक गाली-गलौच करने लगा,तो उपसर्गजयी-मुनिराज ने शान्तिपूर्वक मौन धारण कर लिया। अरे-चुप क्यों हो गया बता भेश नगीना कहाँ नहीं | तो.. लो ये-चरवो मज़ा. परन्तुण्डा पेड़ पर जालगा अरे वाह! ये नगीना ऊपरपेड़ से गिरा. परन्तु यही -- बिल्कुल यही.- मेरा नगीना -- और मोरनी वही जो मेरे आँगन पर आकर बैठता है.. भारी बात समझकर अंगारक को बहुत पश्चाताप हुआ | क्षमा करें भगवन! मुझसे भारी अपराध हुआ. Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उ4 मुक्ति-कमिम्स. आत्मग्लानि के भश अंगारक नगीना लेकर शजा के पास गया. अपराध क्षमा करें राजन ये लो अपना नगीना और स्वर्ग- इस अड़-रत्न को लगाने में मैंने अमूल्य नर - जन्म यू ही गवाया। अरे क्या हुआ? क्या तुमने रत्न लगाना बन्द कर दिया ? नहीं राजन ! रत्न लगाने का काम तो अब शुरू कर रहा हूँ। अपने शुद्धात्मद्रव्य में संयमरत्न - जिसके लिए ये दुर्लभ मनुष्यजन्म मिला है | हमारा पूरा राज्य धन्य, तुम्हारे विचारों पर / / धन्य है अंगारक. (समाप्त