Book Title: Angarak
Author(s): Yogesh Jain
Publisher: Mukti Comics

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Page 7
________________ 31 · अंगारक, नवधा भक्तिपूर्वक आहारदान के बाद अंगारक स्वयं भोजन करता है। और फिर अब गहने बनाने आता है तो-- लाया में लुट गया -.. अब क्या होगा - अभी तो यही था.. अरे ! क्या हो गया ? इतनी सर्दी में भी पसीना -. क्या ढूंढ हे हो ? चुप रह! मैं तो मर जाऊँगा , क्या मुँह दिखाऊँगा..| अभी तो यहीं रखकर गया था. राजा का बेशकीमती नगीना,मैं यहीं रखकर गया था नहीं मिला तो भर आऊंगा ... साय! क्या कर रे हो? अब क्या होगा।

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