Book Title: Anekantvada Author(s): Sukhlal Sanghavi Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf View full book textPage 9
________________ अनेकान्तवाद १६६ वत्व का विरोध प्रतीति के स्वरूप मेद से हट जाता है । इसी तरह धर्म-धर्मी, कार्यकारण, आधार-श्राधेय श्रादि द्वन्द्वों के अभेद और भेद के विरोध का परिहार भी अनेकान्त दृष्टि कर देती है । जहाँ आसत्व और उसके मूल के प्रामाण्य में सन्देह हो वहाँ हेतुवाद के द्वारा परीक्षापूर्वक ही निर्णय करना क्षेमंकर है; पर जहाँ आप्तत्व में कोई सन्देह नहीं वहाँ हेतुवाद का प्रयोग अनवस्था कारक होने से त्याज्य है । ऐसे स्थान में आगमवाद ही मार्गदर्शक हो सकता है । इस तरह विषय-भेद से या एक ही विषय में प्रति गद्य भेद से हेतुवाद और आगमवाद दोनों को अवकाश है । उनमें कोई विरोध नहीं। यही स्थिति दैव और पौरुषवाद की भी है । उनमें कोई विरोध नहीं : जहाँ बुद्धि-पूर्वक पौरुष नहीं, वहाँ की समस्याओं का हल दैववाद कर सकता है; पर पौरुष के बुद्धि पूर्वक प्रयोगस्थल में पौरुषवाद ही स्थान पाता है। इस तरह जुदे-जुदे पहलू की अपेक्षा एक ही जीवन में देव और पौरुष वाद समन्वित किये जा सकते हैं । कारण में कार्य को केवल सत् या केवल असत् माननेवाले वादों के विरोध का भी परिहार अनेकान्त-दृष्टि सरलता से कर देती है । वह कहती है कि कार्य उपादान में सत् भी है और अप्सत् भी है । कटक बनने के पहले भी सुवर्ण में कटक बनने की शक्ति है इसलिए उत्पत्ति के पहले भी शक्ति रूप से या कारणाभेद दृष्टि से कार्य सत्' कहा जा सकता है । शक्ति रूप से सत् होने पर भी उत्पादक सामग्री के अभाव में वह कार्य आविर्भूत या उत्पन्न न होने के कारण उपलब्ध नहीं होता, इसलिए वह असत् भी है । तिरोभाव दशा में जब कि कटक उपलब्ध नहीं होता तन्त्र भी कुण्डलाकार-धारी सुवर्ण कटक रूप बनने की योग्यता रखता है, इसलिए उस दशा में असत् भी कटक योग्यता की दृष्टि से सुवर्ण में सत् कहा जा सकता है। बौद्धों का केवल परमाणु-पुजवाद और नैयायिकों का अपूर्वावयवी वाद-ये दोनों आपस में टकराते हैं। पर अनेकान्त-दृष्टि ने स्कन्ध का-जो कि न केवल परमाणु-पुञ्ज है और न अनुभव-बाधित अवयवों से भिन्न अपूर्व अवयवी रूप है, स्वीकार करके विरोध का समुचित रूप से परिहार व दोनों वादों का निर्दोष समन्वय कर दिया है। इसी तरह अनेकान्त दृष्टि ने अनेक विषयों में प्रवर्तमान विरोधी-वादों का समन्वय मध्यस्थ भाव से किया है। ऐसा करते समय अनेकान्त बाद के श्रास-पास नयवाद और भङ्गवाद आप ही आप फलित हो जाते हैं, क्योंकि जुदे-जुदे पहलू या दृष्टिबिन्दु का पृथक्करण, उनकी विषय मर्यादा का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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