Book Title: Anekant va Syadvada
Author(s): Chandulal C Shah
Publisher: Jain Marg Aradhak Samiti Belgaon

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Page 8
________________ सम्प्रदाय के प्रभाव से मुक्त करके 'यह सिर्फ हमारा ही नही, हमारा, आपका और सभी लोगो का है ।' ऐसी घोपणा द्वारा 'अनेकातवाद' के अद्भुत और विपुल भडार को समग्र मानवता के कल्याणार्थ उन्मुक्त छोड देने का समय अव आ पहुंचा है। जव कि आज के अणुशस्त्र और अन्तरिक्षयान, समस्त मानवता का विनाश करने पर तुले हुए है तब 'स्याद्वाद' का ज्ञान एक ऐसा 'सर्वसरक्षक शस्त्र' है जिसमे जगत की रक्षा करने की अद्भुत शक्ति है । 'स्याद्वाद' के ज्ञान मे वह महाशक्ति छिपी हुई है जो मानव हृदय से शत्रुता की भावना का सहार करके उसके स्थान पर मित्रता की भावना जागृत कर सकती है। 'स्याद्वाद' समग्र मानवजाति का अमूल्य खजाना है, प्रत्येक मनुष्य इस परम सुखदायक सम्पत्ति का अधिकारी है। ____ जो जिसका है उसको मिलना ही चाहिये। जो जिसका है उसे उद्यमपूर्वक और धैर्य से प्राप्त करना चाहिये। ऐसे मनोरथ लेकर यह तुच्छ प्रयास उस सत्कार्य मे निमित्ति बनने की इच्छा मे, भावनापूर्वक इस छोटी सी पुस्तक के रूप मे, इच्छुको के सामने प्रस्तुत है। यह चमचा इस छोटे से काम को करने की प्रेरणा देने वाले, सहायता देने वाले और यह काम कराने वाले सभी आदरणीय स्वजनो, मित्रो, गुरुदेव, एव शासन देव आदि का (किसी के नामाभिधान की विधि किये विना ) आभार मानता है। ___इस पुस्तक मे जो कुछ भी परोसा गया है वह तो महासिन्धु के बिन्दु का भी एक सूक्ष्मातिसूक्ष्म परमाणु मात्र है । परोसने वाले की कुछ त्रुटियाँ रह गई हो, इसमे मति प्रज्ञान के रजकरण दिखाई दे, यह स्वाभाविक है और इसके लिये क्षमायाचना के सिवा और कौन-सा श्रेष्ठ मार्ग हो सकता है ? 'मिथ्या मे दुष्कृतम् । - चन्दुभाई

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