Book Title: Anekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 13
________________ मारुतिनंदन प्रसाद तिवारी जैन शिल्प में बाहुबली प्रथम तीर्थकर आदिनाथ के पुत्र बाहुबली की महान व्यक्तियों के वध को रोकने की दृष्टि से दोनों ने द्वन्तु युद्ध व कठोर तपश्चर्या ने ही श्वेतांबरों और दिगंबरों को करने का निश्चय किया। अन्ततः जब बाहुबली की विजय मंदिरों में बहाबली के पूजन के लिए प्रेरित किया। उनके निश्चित सी हो गई थी, उनके मस्तिष्क में संसार की सत्ता महान तपस्वी होने के कारण ही जैन शिल्प के विभिन्न और साम्राज्य की निर्थकता की बात बौधी । फलतः बाहु. माध्यमों में उनको तपस्या में लीन और लतावल्लरियों बली ने उसी स्थल पर अपने केशों को लोंचकर जैन दीक्षा से वेष्टित कायोत्मर्ग मुद्रा में व्यक्त किया गया। यह ले ली। स्वयं भरत को भी अपनी भूल का अहसास हुमा सर्वधा स्वीकार्य तथ्य है कि बाहुबली दिगंबरों के और वह अपनी सेना सहित राजधानी लौट प्राया। उधर मध्य विशेष प्रचलित हुए और उसमे भी विशेष कर बाहबली ने कठोर तपस्या प्रारंभ कर दी। कायोत्सर्ग दक्षिण भारत मे । श्वेताबरों के मध्य उनके विशेष मुद्रा में खडे बाहबली ठंड, उष्ण, वर्षा, वायू और बिजली प्रचलित न होने का कारण उनका नग्न रूप मे अंकित की कड़क प्रादि से जरा भी विचलित नही हए । हेमचन्द्र किया जाना है। उत्तर भारत से बाहुबली की कुछ ने त्रिषष्ठिशलाका पुरुष-चरित्र में बाहुबली की तपस्या सीमित प्रतिमाएं ही प्राप्त होती है, जब कि परवर्ती का उल्लेख करते हुए कहा है, कि उनका संपूर्ण शरीर मंदिरों से बाह बली चित्रण के उदाहरण अनेकशः प्राप्त लतावल्लरियो से घिर गया था, जिसमे विभिन्न पक्षियों होते हैं । बाहुबली की मूर्तियों के अध्ययन के प्रारम के ने अपने घोसले बना लिये थे । उनके चरण वर्षा के कीचड़ पूर्व प्रथो मे उनसे सबधित प्राप्त उल्लेखो का सक्षिप्त मे घस गये थे। सर्प उनके शरीर से इस प्रकार लटक रहे अध्ययन प्रधिक समीचीन होगा, क्योकि उन्ही कथानको थे, जो उनके हजार भुजाओं वाले होने का प्राभास देते के आधार पर बाहुबली को विभिन्न युगो मे व्यक्त किया थे। वल्मीक (ant hills) से ऊपर उठते सर्प चरण के गया। समीप नुपुर की तरह बधे थे। इस प्रकार की कठोर ___ मादिनाथ और सुनन्दा के पुत्र बाहुबली के सौतेले तपस्या के एक वर्ष व्यतीत हो जाने के उपरान्त भी बाहुअग्रज भरत चकवर्नी ही पिता के पश्चात् उनके उतरा- बली को केवल ज्ञान प्राप्त नहीं हो सका, जिसका कारण धिकारी नियुक्त हुए, जो विनीता से शासन करता था। उनका गर्व था, जो एक प्रकार का मोहनीय कर्म था। बाहुबली को राजधानी बहली देश में स्थित तक्षशिला तदुपरान्त प्रादिनाथ ने अपनी दो पुत्रियों, ब्राह्मी छ थी। दिगंबर परंपरा में बहबली को पोडनस या पोडनपुर सुन्दरी, को बाहुबली के पास इस तथ्य से अवगत कराने का शासक बताया गया है। अनेक शासकों पर विजय के लिए भेजा। अपनी भूल अनुभव करने और दर्प से प्राप्ति के उपरान्त भरत ने अपने समस्त ६६ भ्रातामों से मुक्त हो जाने पर बाहुबली को केवलज्ञान प्राप्त हो उसके प्रति प्रादर व्यक्त करने की मांग की। बाहुबली के गया। प्रारम्भिक दिगंबर ग्रन्थों में ब्राह्मी व सुन्दरी के अतिरिक्त सभी भ्राता पहले ही संसार का परित्यागकर आगमन का उल्लेख अनुपलब्ध है। इन प्रथों में वर्णित है जैनधर्म की दीक्षा ले चुके थे। बाहुबली ने भरत की कि दर्प और संक्लेश के कारण बाहूबली केवलज्ञान से सत्ता स्वीकार करने से इनकार कर दिया, जिस पर क्रुद्ध वंचित थे, और उनको केवलज्ञान तभी प्राप्त हुघा, जब वे होकर भरत प्रपनी विशाल सेना सहित बाहुबली के वर्ष के अंत में साधु की उपासना को पहुंचे। प्रादिपुराण साम्राज्य की ओर चल पड़ा। किन्तु अनेक निरपराध में भी बाहुबली की तपस्चर्या का विस्तृत उल्लेख प्राप्त

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