Book Title: Ancient Jaina Hymns
Author(s): Charlotte Krause
Publisher: SCIndia Oriental Institute Ujain
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ANCIENT JAINA HYMNS
नाण- गुणि, झाण-गुणि, चरण- गुणि मोहिया सार- उवयार-संभार-संसोहिआ । रयणि दिणि हरिस - वसि, सुत्त जागरमणा
तात, तुह नाम झायंति तिहुयण-जणा ॥८॥
सिद्धिकर, ऋद्धिकर, बुद्धिकर, संकरा
विषय-विष- अमिय-भर, सांमि सीमंधरा । पुव्व-भव - विहिअ वर - पुन्न-वय- पामिआ
राषि हिव भूरि- भव- भमण मू, सामिआ ॥ ९ ॥
कम्म-भर-भार-संसार - अइभग्गउ
घणउं फिरिऊण, जिण, पाय तुह लग्गउ । मज्झ हीणस्स, दीणस्स, सिव- गामिया
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करवि करुणा-रसं, सार करि सामिआ || १० ॥
कठिण हठ घाय तिरियत्तणे ताजिउ
नरयं-गइ करुणं विलवंत नहु लाजिउ ।
मणुअ-गइ हीण, पर-कम्म - वसि पडियउ
लागि तुह चरणि आनंदि हव चडियर ॥११॥
केवि तुह दंसणे, देव, सिव- साहगा
केवि वाणी सुणी चरणि भव- मोअगा । भरह - खित्तमि हउं झाणि छउं लग्गउ
देहि आलंवणं, नाह, जइ जुग्गर ॥१२॥
धन ते नर जहिं सामि सीमंधरो
विहरए, भविअ - जण - सव्व-संसयहरो ।
काम-घट, देव-मणि, देव - तरु फलिय
तीह घरि जीह रहिं, सामि, तउं मिलियउ ॥१३॥
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