Book Title: Ancient Jaina Hymns
Author(s): Charlotte Krause
Publisher: SCIndia Oriental Institute Ujain

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Page 164
________________ ANCIENT JAINA HYMNS margin with the final reading ऽध्यक्षत्वे; 12d प्रोजायंते; १३, 13d १४; 14 the whole stanza is written on the margin without any indication re its place, which has been conjectured from the context and metre; 15 only partially readable owing to holes in paper; 16 do.; 17 do. . 3. VARAKĀŅA-PĀRŚVANĀTHA-STAVANA la गधत; 2d प्रणितमो; भाणा; 3a. गुरू; 3b प्राज्ञानिधिनिहि 3c मेण्टिव; 3d पितंमिप्र; 4d इछति; 5b चक्रमोष्टे; 5c प्राश्य; मंवगाज़ 5d लंमांबु; Ga. डासयापि; 6d हरिकुरींगी; 7b चतुमामम; 7c तएवयंतु; 7d वतांरि; 8a स्तामि; 8c नाम्नामिते; 8d सार्व; 9a. विभो; 9b भव्यांग; ताजित; 9d नुदवि; 10b दश्रुभ; 10c सुचिरंविलसश्वपास्य; 10d विकास; 11a यन; भवनं; 11b यत्वां; परिवहत्य; 11c भारयस्यघ; 11d जियिनात्म; 12a. हरः प्रप्टतियोपिहतः प्रभावस्तं; 12b भवन्य; 12d सितुंक इछेत् 13a नतुल्य; पनास्त्व; 13b राशि; 13d ये; रूचभिः; भिस्ते; 14b षोवि; 14c विभाकिमहछसि; 14d पलास; 15b हत्क; 15c शशीरुचोशुवते; 15d कस्त्वांनि; संचिरतोधतीष्टं; 16a. नाजि; भवनः; 16b मनाग; 16d मंदि; शिषरं; 17b तदेही; 17c यस्मिस्तमप्रसमयन्नय; वत्तिः; 17d परस्त; जग; 18b भाः वः; 18c नाचवोधा; 18d सुर्या; यमहिमासमुनिंद्र; 19b राशे; 19c वोध; 20 शसये; भाव; 20b सांते; 20c निछंति; 20d नानैः; 21a कथंवाङमु; 21b यथासुस्तन; 21c महीमासुमणोस्त्र; 21d त्रु; क्रुलेपि; 22a. गंभीरह; 22b विबुधात्वदायाः; 22c नयरे; 23b चामरं; 23c यत्रेतरो; ममुत; भोः; 23d शतसो; 24a. गंभीरगी; ज्वल; 24c गणोश्रेयतस्व; 25c लुपत्यशौककिशलासलताः मतस्त्रां; 26b छिदे; नाघा; 26d भगवंन्पुरषोत्तमोशि; 27b ईव; 27c नुवि; 27d सोष; 28b चंद्रांश्रु; 28c पैरलध्व; गमितविदूर; 28d पिक्षितोसि; 29a. श्रजो; विद; 29c तिक्षी; 29d शौक; यूषं; 30d द्रोसिशिव; रस्मः; 31a दूरगतस्तं; 31c तिरुणा; 31d (मुच्चस्टंक; 32b मुचप्र; 32c आमास्त; वशे; भवानसंग; 32d मैश्व; 33b छिदो; 33c यपि; 33d कांति; 34a झुकेशवि; 34b सानही; 34c यातज; 34d शनो; 35a नादिषु; 35b भिन्नगस्मं; .36b विषर्मेमिरा; 37b नातर्वयोस्यपदन; 37d समय; 38b वशज्ज; 39d त्कोतिना; वासु; 40a त्वन्ना; सरण्य; 40d लभ्यते; संख्यसारणंसरणं; 41c ऋभि; 42b त्वद्भक्तयो; 42c रुप्रत; 42d भिवंति; 43a दहीश; हानां; 43b तदाश्रु; 43c भजंती; निगव; 126

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