Book Title: Ancient Jaina Hymns
Author(s): Charlotte Krause
Publisher: SCIndia Oriental Institute Ujain

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Page 161
________________ THE TEXTS कर-जुअल जोडि करि, वयण तू निसुणिसो - बाल जिम हेल देइ, पायं तुह पण मिसो । महुर सरि तुम्ह गुण-गहण हउं गायसो निय-नयणि रूव रोमंचिट जोइसो ॥१४॥ तुम्ह पासि छिउ, चरण परिपालिसो हणिों कम्माणि, केवल-सिरिं पामिसो । तुम्ह, जिणु निअय-करु सिरसि संठविसउ सोवि कईआवि y होइसिइ दिवसउ ॥१५॥ भरह-खितमि सिरि-कुंथ-अर-अंतरे जम्म पुंडरिंगणी, विजय पुक्खलवरे । मुणिसुवय-तित्थ-नमि-अंतरं इह जया रज्ज-सिरि परिहरवि, गहिय संजम तया ॥१६॥ हणिय कम्माणि, लहु लद्ध केवल-सिरी देहि मे दंसणं, नाह, करुणा करी । भाविए उदय जिणि सत्तमे सिव-गए बहूअ-कालेण सिद्धि गमी, सामिए ॥१७॥ मोह-भर, मान-भर, लोभ-भर भरियउ राग-भर, दंभ-भर, काम-भर पूरिउ । एह परि भरह-खितमि मूं, सामिअ सार करि, सार करि, सार करि (तारि) गोसामिअ ॥१८॥ भोग-पद, राज-पद, नाण-पद, संपदं चक्कि-पद, इंद्र-पद, जाव परमं पदं । तुज्झ भत्तीइ सव्वं पि संपज्जए एह माहप्प तुह सयल जगि गज्जए ॥१९॥ 123

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