Book Title: Anchalgacchiya Acharya Merutung evam Unka Jain Meghdoot Kavya Author(s): Ravishankar Mishr Publisher: Z_Aspect_of_Jainology_Part_2_Pundit_Bechardas_Doshi_012016.pdf View full book textPage 6
________________ ११८ रविशंकर मिश्र किया । इनमें श्रीजयकीर्तिसूरि मुख्य पट्टधर थे । इसके अतिरिक्त रत्नशेखरसूरि, माणिक्यनन्दनसूरि माणिक्यशेखरसूरि, महीतिलकसूरि आदि अनेक विद्वान् उपाध्याय व मुनि थे । आचार्यश्री के सङ्घ में विशाल साध्वी-परिवार भी था । साध्वी श्रीमहिम श्रीजी को आचार्यश्री ने "महत्तरा" पद पर स्थापित किया था । "चक्रेश्वरी भगवती विहित प्रसादाः श्रीमेरुतुङ्गगुरवो नरदेववंद्याः ॥ ३ यह उल्लेख स्पष्ट करता है कि आचार्य श्रीमेरुतुङ्गसूरि चक्रेश्वरीदेवी के विशिष्टकृपापात्र थे । स्वर्गगमन : इस प्रकार आचार्य श्रीमेरुतुङ्गसूरि अनेकानेक ग्रामों एवं नगरों का पाद - विहार करते हुए एवं जन-जन का उपकार करते हुए, अन्त में वि० सं० १४७१ की मार्गशीर्ष पूर्णिमा दिन सोमवार को अपरा उत्तराध्ययनसूत्र का श्रवण करते-करते समाधिपूर्वक कालधर्म को प्राप्त हो गये । साहित्य-क्षेत्र में अवदान : आचार्य श्रीमेरुतुङ्गसूरि का साहित्य क्षेत्र में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है । इनके द्वारा रचित साहित्य, जैनसंस्कृति के लिए तो प्रभावी सिद्ध ही हुआ, साथ ही समग्र भारतीय साहित्य में भी अपना मूलभूत स्थान रखता है । आचार्यश्री के ग्रन्थों की संख्या के विषय में विभिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न ही सम्मतियाँ दी हैं । डा० रामकुमार आचार्य एवं डा० नेमिचन्द्रशास्त्री ने आचार्यश्री के आठ ग्रन्थों का ही उल्लेख किया है । श्री भंवरलाल नाहटा आचार्यश्री द्वारा रचित ग्रन्थों की संख्या बारह दी है। मुनि कलाप्रभसागरजी ने आचार्यश्री के ग्रन्थों की संख्या उन्नीस कही है, परन्तु श्रीपार्श्व ने आचार्यश्री के ग्रन्थों की संख्या छत्तीस दी है । उन्होंने "अञ्चलगच्छ दिग्दर्शन" नामक अपने ग्रन्थ में आचार्यश्री के छत्तीस ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय देते हुए उन्हें निम्न क्रम में प्रस्तुत किया है १. कामदेवचरित्र, २. सम्भवनाथचरित्र, ३. कातन्त्रबालावबोधवृत्ति, ४. आख्यातवृत्ति टिप्पण, ५ जैनमेघदूतम्, ६. षड्दर्शनसमुच्चय, ७. धातुपारायण, ८. बालावबोधव्याकरण, ९. रसाध्यायटीका, १०. सप्ततिभाष्यटीका, ११. लघुशतपदी, १२. शतपदीसारोद्धार १३. जेसालप्रबन्ध, १४. उपदेश चिन्तामणिवृत्ति, १५. नाभाकनृपकथा, १६. सूरिमन्त्रकल्प, १७. सूरिमन्त्रसारोद्धार, १८. जुरावल्लीपार्श्वनाथस्तव, १९. स्तम्भक पार्श्वनाथप्रबन्ध २०. नाभिवंश महाकाव्य, १२. यदुवंशसम्भवमहाकाव्य, २२. नेमिदूतमहाकाव्य, २३. कृद्वृत्ति, २४. चतुष्कवृत्ति, २५. ऋषिमण्डलस्तव, २६. पट्टावली, २७. भावकर्म प्रक्रिया, २८. शतकभाष्य, २९. नमुत्थणंटीका, ३२. राजमती - नेमिसम्बन्ध, ३३ वारिविचार, ३४. पद्मा३०. सुश्राद्धकथा, ३१. लक्षणशास्त्र, वतीकल्प, ३५. अङ्गविद्योद्धार, ३६. कल्पसूत्रवृत्ति । १. श्री पार्श्व : अञ्चलगच्छ दिग्दर्शन ( गुजराती ), पृ० २३२ । २. वही, पृ० २३१ । ३. वही, पृ० २०९ ॥ ४. डा० रामकुमार आचार्य : संस्कृत के सन्देश - काव्य, पृ० १९४ - १९५ ॥ ५. डा० नेमिचन्द्र शास्त्री : संस्कृत काव्य के विकास में जैन कवियों का योगदान, पृ० ४८३ । ६. मुनि कलाप्रभसागरजी द्वारा सम्पादित : श्री आर्यकल्याण गौतम स्मृति ग्रन्थ, पृ० २६ । ७. वही, पृ० ८८-८९ । ८. श्री पार्श्व : अञ्चलगच्छ दिग्दर्शन ( गुजराती ), पृ० २२० - २२३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13