Book Title: Anandghan Chovisi
Author(s): Sahajanand Maharaj, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 10
________________ ... "ज्ञानविमलसूरि कृत टब्बा में थी जोइयै धारी नै लिखिये पिण ते टब्बा ने जोयुं ते किहां एक तौ अर्थ लिखतै अत्यन्त थोडंज विचार्यु तेउना लिखवा थी जणाय छै ते कोई पूछ किहां, ते जणाऊं, ए अभिनंदन ना पदमां 'अभिनंदन जिन दर्शन तरसिये' एहनौ अर्थ अभिनंदन परमेश्वर ना मुख नु देखते नै तरसिय छै एतलै कोई रीते मिल ते वांछियै एह लिखतै एतलू नहीं बिचायु दर्शन शब्दे जैन दर्शन नु कथन छ किम एज गाथा में त्रोजे पदे “मत मतभेदे रे जो जइ पूछियै" ते परमेश्वर ना मुख देखवा मां मत मतभेदे स्यु पूछस्यै नै तेज अर्थ हुवै तो आगल पद मां 'सहुथापे अहमेव' ते परमेश्वर ना मुख दर्शन मां सर्वमत भेदी अहं एनू स्यु थापे पर अंत तांइ इमज लिख्ये गयुं ।" ज्ञानविमल करतै अरथ, कयौँ न किमपि विचार । तेथी ए तवना तणो, लेख लिख्यो अविचार ॥१॥ "कोई कहिसी बिना विचारों स्युं लिख्यौ ते, पहिली गाथा मां "मत मतभेदे जो जइ पूछिये सहु थापे अहमेव' ए पद मां परमेश्वर ना मुख दर्शन नो स्यौ विशेषण फिरी दर्शन शब्दे सम्यक्त अर्थ लिख्यं तिहां इम न विचायु 'अभिनंदन जिनदर्शन, जैन दर्शन, ते बिना मत मतभेदे पूछतै अहं एव स्यूं थापै फिरी अति दुर्गम नयवाद, आगम वादे गुरुगम को नहीं, धीठाई करी मारग संचरू, एउमा मुख नो सम्यक्त्व नौ स्यौ विशेषण मुख्य विचार्यो ज थोड़ो" ( अभिनन्दन स्त० बाला० ) ____ "इहां चंद्रप्रभुजी नी स्तवना मां प्रथम ज्ञानविमलसूरि इम लिख्यु हिवे शुद्ध चेतना अशुद्ध चेतना प्रतें कहै छै । अनादि आतमायै उपाधि भावै आदर्या माटै सपत्नी भावै सखी कही पिण शुद्ध चेतना नै सखी सुमति श्रद्धादि संभवै जिम x x ए स्वपक्षे वचन सूत्र कर्त्तायेज कह्यौ ते सूत्र कर्ता तौ भद्रक न हुतौ परं अर्थकर्ता-इम लिख्यु, ते ते जाणै''। (चन्द्रप्रभ स्तवन) "ज्ञानविमलसूरि महापण्डित हुता तेउए उपयोग तीक्ष्ण प्रयुज्यो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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