Book Title: Anand Pravachana Part 9
Author(s): Anandrushi
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 18
________________ १० आनन्द प्रक्चन : भाग ६ "सत्य तमाम ज्ञानों की आधारशिला है और तमान समाजों के साथ सम्बन्धों को सुदृढ़ करने वाला सिमेंट है।" अहमदाबाद के एक प्रतिष्ठित भाई ने अपनी पत्नी से किसी बात पर मतभेद होने के कारण आवेश में आकर पत्नी से सिर पर झा दे मारी, जिससे वह मूर्छित होकर गिर पड़ी, कुछ ही देर में उसने वहीं दम तोड़ दिया। वह भाई तुरन्त पश्चात्तापयुक्त होकर पुलिस स्टेशन गए और अपने अपराध को सत्य घटना कह सुनाई। पुलिस ने उन पर केस चलाया। उस भाई ने वकील ने कहा-" इस दुर्घटना में कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है। अतः यदि आप यह बयान दे देंगे कि मेरे हाथ से यह अपराध हुआ ही नहीं है, तो आप निर्दोष छूट जाएंगे।" उस सत्यनिष्ठ भाई ने कहा- मैं असत्या बोलकर अपने को निर्दोष सिद्ध नहीं करना चाहता। सत्य बोलते हुए आप मुझे कानून से बचा सकते हों तो बचाइए। अन्यथा, अपने किये हुए अपराध के बदले में मुझे जो सजा होगी, उसे मैं भोगने को तैयार हूं।" कोर्ट में जब उस पर मुकदमा चना तो मजिस्ट्रेट के सामने उसने सत्य बयान दिये। इससे मजिस्ट्रेट बहुत प्रसन्न हुए। मजस्ट्रेट दुखित हृदय से कानून की दृष्टि से सजा तो सुना दी, परन्तु अपनी राय देते हुए उसने कहा-"न्यायाधीश पद पर काम करते हुए मैंने ऐसा सत्यवादी मनुष्य पहली ही बार देखा है। इसलिए मैं सरकार से प्रार्थना करता हूं कि जब भी कोई खुशी का अवसर आए तो इस सत्यवादी भाई को दण्डमुक्त कर दिया जाए।" ऐसा ही हुआ। कुछ समय बाद ही सप्तम एडवर्ड के राज्याभिषेक की खुशी में इस भाई को दण्डमुत्त कर दिया गया। यह केस जब पांच हजार मील दूर बैठे यूरोप निवासियों ने सुना तो वे इस भाई की सत्यप्रियता पर बहुत प्रसन्न हुए। नतीजा यह हुआ कि वहाँ की कई कम्पनियों ने बिना मांगे ही इस भाई को अपनी एजेंसियां दे दी, जिससे उसका व्यवसाय बड़े जोरों से चल निकला और कुछ ही वर्षों में उसकी गिनती धनकुबेरों में होने लगी। बन्धुओ ! यह है, सत्यशरण का चमत्का ! उस व्यापारी ने सत्य की शरण ली और सत्य पर इटा रहा, जिसके कारण उसका कष्ट भी दूर हो गया, सम्मान और धन भी बढ़ा। अपराधी के सत्य की शरण में जाने का चमत्कार शास्त्र में बताया है कि कोई साधु मोहाश कोई पाप या अपराध कर लेता है, जिससे उसका महाव्रत या व्रत भंग हो जाता है, परन्तु दृढ़ विश्वासपूर्वक सत्य की शरण लेकर अगर वह आचार्य या गुरु की सेना में आकर सच्ची-सच्ची आलोचना कर लेता है तो उसकी रक्षा हो जाती है। कदाचित् कोई अपराध प्रगट हो जाए तो इस प्रकार सत्यतापूर्वक आलोचन या प्रकटीकरण जरने और पश्चात्ताप सहित प्रायश्चित्त ले लेने पर समाज उसे माफ कर देता है। इस प्रकार उसकी यहाँ भी और आगे भी आत्मरक्षा हो जाती है। सत्य उसकी आत्मा के पाप के बोझ से हलका और शुद्ध बना

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