Book Title: Alpaparichit Siddhantik Shabdakosha Part 3
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 10
________________ प्रथम भागनु संपादकीय वक्तव्य 5 “ॐ णमो उवीसाए तित्थयराणं उसभाई महावीरपज्जवसाणाणं । णमो गोयमाई हामुणीणं । इक्कारस अंगाई, बारसुवंगा पयन्नगा दस य । छेया छ चऊ मूला, नंदी अणुओगाय पण न्याला ॥ १॥" साहित्यमा ऊंडा ऊतरेला रसिकोने विविध विषयोना बोधनी आवश्यकता रहे हे. जे विषयनो बोध जे मनुष्यने होवो जोइए ते बोध सिवायनो मनुष्य ते विषयने ग्रहण करवा जाय तो अज्ञानी वांदरानी जेम "मने पकडयो-मने पकडयो" जेवी एनी दशा थाय. तेथी ते विषयना बोध माटे ते विषयमा शब्दना ज्ञाननी, अर्थना ज्ञाननी अने तेना भावार्थना ज्ञाननी, अर्थात् ते पदार्थना शब्दार्थ, भावार्थ अने ऐदपर्यायनी जरूर छे. जो ते समझ्या सिवाय प्रवृत्ति कराय तो भोजन करवा बेठेलो 'सैंधव' मगावे अने 'घोडो' लावे तेना जेवु थाय. शब्दना बोधने करनारु जे साहित्य होय तेने 'शब्दकोष' आदि शब्दथी संबोधी शकाय. एवा 'शब्दकोषोनी उत्पत्ति कां तो आगमोमां आवेला पर्यायो रूपे आपी होय कां तो निघण्टु जेवा 'शब्दकोषो' रूपे होय, अथवा बीजा घणाए 'शब्दकोषो' रूपे होय, आथी दरेक भाषावार अनेक 'शब्दकोषो' योजाया छे अने योजाय छे. जैन दर्शन माटे तो ते शब्दोना अर्थ टीकाकारोए प्रकरणना आधारे जे रीते मंजूर कर्या छे ते रीते ज लेवा योग्य छे. शब्दो यौगिक, रूढ अने मिश्र एम साहित्यकारोए मान्या छे. ते यथार्थ छे. आथी जैन दर्शनमां अंडा उतरवावालाने पण ते बोधनी जरूर तो ले ज, तेथी तेवा प्रकारना 'शब्दकोष'नी जरूरियात मानवी'ज पडे. आ उद्देश लक्ष्यमां लइशु तो जैनदर्शनमां आवता शब्दोना अर्थवाला अनेक कोषो होवा छतां पण आ नवा कोष माटे स्थान छे ज संकलनाकारः—प्रन्थकार स्वतन्त्र लेखिनीथी जे ग्रन्थ करे ते तेमनी ज कृति कहेवाय छे. परन्तु बीजा ग्रन्थोमांथी एकत्रित करेलु' होय तो आ बधु बीजा ज ग्रन्थोमांनु छे, एम जणाववा माटे पोते संकलना करी छे एम जगावे छे. तेथी महत्वपूर्ण अनेक जैन ग्रन्थोना संपादक अने संशोधक, तेमज संस्कृत, प्राकृत अने गुजरातीमां विविध विषयोनी कृतिओ रचनारा, आगमोद्धारक आचार्यश्री आनन्दसागरसूरीश्वरजी महाराजे सैद्धान्तिक शब्दोनी आ कोषमां संकलना करी छे, आथी आ ग्रन्थना 'संकलनाकार ' प० ता० आममोद्धारकगुरुदेवश्री छे. आगमोनु मुद्रण- बांचना :- आ कलिकालमां विक्रमनी वीसमी सदीमां एवो पण एक समय आव्यों के ज्यां शास्त्रीय बोध ओछो थवा लाग्यो अने हस्तलिखित प्रतो वांचवानी तेमज वांचवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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