Book Title: Ajitsen Shilwati Charitram
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Ajitsagarsuri Shastra Sangraha

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Page 12
________________ ShriMahavir JanArchanaKendra Achanashn a garson Gyaman श्री | श्री गुरुगुणाष्टकम मजितसेनशीलवतीचरितम्। श्रीमच्छास्त्रविशारदजैनाचार्ययोगनिष्ठबुद्धिसागरसूरीश्वरगुणाऽष्टकम् (मालिनीवृत्तम् ) सुरमनिनरसेव्यं यस्य पादारविन्द, विमलकमलनेत्रं पापपुञ्जप्रहारि । परमकरुणभावद्योतकं दीप्तिगेहं, नमत मुनिवरं तं, बुद्धिपाथोधिसूरिम् ॥ १ ॥ दयितमुदयवन्तं मोदमूलं जनानां, जननमरणहीनं हीनकर्माणमीशम् । मुनिगुणनिभृताङ्गं धर्मकर्मक्षमाणां, प्रणमत विनयेनाचार्यबुद्ध्यम्बुराशिम् ॥२॥ शरणमशरणानां धर्मिणां धर्मदाय, सुखदमसुखभाजां वित्तदं निर्धनानाम् । विपदरिवनदावं, कल्पवृचं जनानां, भजत भविकलोकाः ? सूरिबुद्ध्यब्धिमाशु ॥३॥ प्रथयति विपुलार्थ सार्थवाहव्यनक्ति, प्रकटयतिशिवद्धि मोहमायांभिनत्ति । प्रशमयतिमहाधिं भव्यमूर्तियेदीया, स्मरत तमनुवेलं बुद्धिपाथोधिसरिम् ।। ४ ॥ कविजनमननाहः काव्यकर्मप्रभावो-विलसति रतिकारी यस्य देदीप्यमानः । जगति जयति दानं दानवारिप्रगीतं, स्मरत मनसिनित्यं सागराचार्यबुद्धिम् ॥ ५॥ विगलितमदमानं मानवानाममोघं, ददतमतिसुबोध बुद्धिमत्सेवनीयम् । कलिमलसुरसिन्धुं सोदरं सक्रियाणां प्रणमत मुनिवर्य सूरिबुद्ध्यब्धिमीशम् ॥ ६ ॥ सममतिररिमित्रे यस्य मातिस्म शस्ता, विरतिरतिविशाला राजतेस्मक्षमायाम् । तमपरभवबोध ज्ञातसिद्धान्तसारं, भजत भवहरं भो ? बुद्धिपाथोधिसूरिम् ॥ ७॥ भवदवजलवाहं कर्मवल्लीकुठारं, शिवसुखसुरधेनुं धर्मबीजाम्बुसेकम् । श्रितजनघनकर्मक्षोणिभृद्धेदवजं, प्रणमत मुनिपूज्यं बुद्धिपाथोधिमारिम् ॥ ८॥ पठितमिदममोघं स्तोत्रमेतत्प्रमोदात्, विनयगुणधरेण श्रीगुरोभक्तिभाजा । श्रमणसुगुणधाम्ना शिष्यहेमेन्द्रकेण, पठति मनुजवा य: स संपत्तिमेति ॥६॥ For Private And Personlige Only

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