Book Title: Ahimsa aur Samajik Parivartan Adhunik Sandarbh Author(s): Kalyanmal Lodha Publisher: Z_Kusumvati_Sadhvi_Abhinandan_Granth_012032.pdf View full book textPage 1
________________ -JEE आज मानव चिन्तन एक विचित्र वैचारिक ऊहापोह से संत्रस्त और ग्रस्त है । एक विचारधारा है, जो हिंसा, प्रतिशोध और सत्ता को मनुष्य की प्रकृति का जन्मजात और आवश्यक अंग गिनती है तो दुसरी अहिंसा, समता, सहिष्णुता, मैत्री और सहअस्तित्व को । नीट्शे ने कहा था कि दयनीय और दुर्बल राष्ट्रों के लिए युद्ध एक औषधि है। रस्किन ने माना कि युद्ध में ही राष्ट्र अपने विचारों की सत्यता और सक्षमता पहचानता है। अनेक राष्ट्र युद्ध में पनपे और शांति में नष्ट हो गये। मोल्टेक युद्ध-हिंसा को परमात्मा का आन्तरिक अंग गिनता था। उसकी धारणा थी कि स्थायी शान्ति एक स्वप्न है और वह भी सुन्दर । डार्विन का शक्ति सिद्धान्त तो ज्ञात है हो । स्पेंगलर जैसा इतिहासज्ञ भी युद्ध को मानवीय अस्तित्व का शाश्वत रूप गिनता है। आर्थर कीथ ने युद्ध को मानवीय उत्थान की छंटाई गिना । वैज्ञानिक डेसमोन्ड मोरिस, 'नैकड एप' में राबर्ट आड्रे 'दि टेरीटोरियल इम्पेरेटिव' में, कोनार्ड लारेंज 'आन एग्रेसन' में फ्राइड की मान्यता के पक्षधर हैं कि आक्रामकता और हिंसा मनुष्य की जन्मजात, स्वतंत्र, सहज एवं स्वाभाविक चित्तवृत्ति है। IDDDDEPEEDEDEPEEDEREDEEPREDDPEPPEPPEDD अहिंसा और सामाजिक परिवर्तन : आधुनिक सन्दर्भ U ----- - - - - - - इन भ्रान्त धारणाओं के विपरीत दूसरा व्यापक और स्वस्थ मत है उन विचारकों का, जो अहिंसा के सिद्धांत और दर्शन को आज चिन्तन के नये धरातल पर प्रतिष्ठित कर उसे केवल धर्म और अध्यात्म का ही नहीं, दर्शन और मुक्ति का साधन ही नहीं, सामाजिक परिवर्तन, अहिंसक समाज, विश्वशांति और सार्वभौम मानवीय मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में भी स्वीकार कर रहा है। यूनेस्को जैसी संस्था ने भी इस पर गम्भीर विचार-विमर्श के लिए अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियाँ आयोजित की, सामाजिक सर्वेक्षण और शोध योजनाओं को विविध रूपेण क्रियान्वित किया। आज सभी देशों, वर्गों और समाजों के प्रबुद्ध चिन्तक यह स्वीकारते हैं कि स्थायी विश्वशान्ति के लिए आमूल राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक क्रान्ति की अपरिहार्य आवश्यकता है, वह केवल महावीर, बुद्ध व गाँधी की अहिंसा से सम्भव है । यों कहना अधिक संगत होगा कि मानव सभ्यता का 'भविष्य अहिंसा व शान्ति पर ही निर्भर करता है। सम्भवतः यही । कारण था कि महान वैज्ञानिक आइन्स्टीन ने अपने कक्ष में महात्मा गाँधी का चित्र लगाया। किसी राजनेता और वैज्ञानिक का नहीं । मानव समाज की मूल प्रक्रिया, मानवीय अभिप्रेरणा व प्रयोजन चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम EDEEPEPPEECIPEPPEECREE ---प्रो० कल्याण मल लोढ़ा (कलकत्ता) ACE साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jan Education Internation or Private & Personal Use Only www.jaglibrary.orgPage Navigation
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