Book Title: Ahimsa aur Samajik Parivartan Adhunik Sandarbh Author(s): Kalyanmal Lodha Publisher: Z_Kusumvati_Sadhvi_Abhinandan_Granth_012032.pdf View full book textPage 7
________________ KASARA समझा । अहिंसा के निषेधात्मक और विधेयात्मक यथार्थ प्रजातन्त्र की स्थापना का समर्थ साधन है या दोनों रूपों पर गहन विचार किया। भाव हिंसा (यंग इंडिया-मार्च १६, १९२५) हिंसा सामाजिक और द्रव्य हिंसा का सर्वांगीण विवेचन कर हिंसा के दुराग्रह है, अहिंसा सत्याग्रह । वर्तमान समय में पाँच समादान बताए। उन्होंने कहा--'अहिंसा जनता का विरोध व्यक्ति और सम्पत्ति के विरुद्ध निउणा दिट्ठा सव्व भूएसु संजमो (दशवकालिक हिंसापरक बन जाता है, ऐसा विरोध सामाजिक 5-) क्योंकि सभी प्राणियों को जीवन प्रिय है- परिवर्तन का उपकरण कभी नहीं बन सकता, वह तो Sil सुख अनुकूल है और दुःख प्रतिकूल । 'अप्पिय वहा, अव्यवस्था, तनाव और निराशा को पनपाकर और मा पिय जीवणो, जीविउ कामा, सव्वेसि जीवियं पियं' अधिक हिंसात्मक कार्रवाई का निमित्त बनता है । (आचारांग १-६२-७) महावीर की इस अहिंसा आधुनिक चिन्ताधारा के अन्य सिद्धान्तों का / संस्कृति को ही आधुनिक युग में महात्मा गांधी ने तथ्यानशीलन भी करें। अपनाया, विनोबा भावे ने सर्वोदय सिद्धान्त में स्वीडन अर्थशास्त्री एडलर कार्लसन ने इस प्रमुख माना। दृष्टि से 'विपर्यस्त उपयोगितावाद' की व्याख्या नीग्रो नेता मार्टिन किंग लूथर का उद्धरण करते हुए लिखा है-'हमें अपनी सामाजिक भी यहाँ समीचीन होगा 'अहिंसक व्यक्ति की यह व्यवस्था का पुननिर्माण मनुष्य के कष्टों को मान्यता है कि अपने विरोधी की हिंसा के कम करने के लिए करना चाहिए। जो आज समक्ष भी वह आक्रामक भाव न रखे अपितु यह धनी और समृद्ध हैं उनका आर्थिक स्तर बढ़ाना एक सत्प्रयास करे कि उसकी हिंसात्मक या आक्रामक खोखला व सारहीन विचार है। जब तक प्रत्येक शक्ति का निरसन अहिंसा से संभव हो सकेगा।' व्यक्ति की आवश्यकताओं की पूर्ति न हो जाए, लूथर कहता है 'धिक्कार के बदले धिक्कार वापस कोई भी अधिक समृद्ध न हो इसके लिए आव57 लौटाने से धिक्कार का गुणन होता है, अन्धकार श्यक है-नैतिक साधन न कि भौतिक उपाय ।' ये । कभी अन्धकार दूर नहीं करता-हिंसा से हिंसा की नैतिक साधन ही व्यक्ति और समाज को शांति १ वृद्धि होती है ।' महात्मा गाँधी ने इसको ही सार्व- लाभ दे सकते हैं। इसी से मनोविश्लेषणात्मक । भौम प्रेम और सर्वाधिक दम कहा था। अहिंसा चिकित्सा अब (जूलियस सेगल के शब्दों में) व्यक्ति को अभय करती है और दूसरों को भी। मानसिक रोग और पीड़ा से मुक्ति के लिए आत्मला अभयं वै ब्रह्म मा मैषी-यही उसका मंत्र है। परितोष पर अधिक बल देती है-आत्मोपलब्धि 5 विनोबाजी के शब्दों में इससे मनुष्य सत्यग्राही पर, क्योंकि इसी से व्यक्तित्व का स्वस्थ और होता है। समीकृत विकास संभव है। मनुष्य के प्रकृत मूल्य का बेलजियन समाजवादी चिन्तक बार्ट डे बोध से अव्यवस्था को भी सुव्यवस्था में परिणत / लाइट ने लिखा-'हिंसा का प्राचुर्य जितना अधिक किया जा सकता है । ल्योन आइजनबर्ग ने इस पर होगा, क्रांति उतनी ही कम । ऐसीमोव का वाक्य जोर दिया है कि 'हमें मनुष्य की प्रकृति का हो ला है 'हिंसा असमर्थ आदमी का अन्तिम आश्रय है।' मानवीकरण करना है क्योंकि मानवीय हिंसा IN हिंसा और कटुता के मध्य सामाजिक परिवर्तन सामाजिक दमन का हेतु नहीं उसकी प्रतिक्रिया का 6 अपनी शक्ति और अर्थवत्ता समाप्त कर देता है। परिणाम है।' आज की जनतांत्रिक पद्धति की मूलभूत आवश्य- वर्तमान विसंगति यह है कि आज बालक कता हिंसाविहीन शासन तन्त्र से ही संभव है। या किशोर वर्ग जब युवावर्ग को संघर्ष और महात्मा गांधी के अनुसार अहिंसा का विज्ञान ही हिंसारत देखता है, जब जातीय नेता स्वार्थ व सत्ता | चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम 59 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ ) www.jain towary.org O VERT Jain Sucation InternationalPage Navigation
1 ... 5 6 7 8 9