Book Title: Agam Suttani Satikam Part 23 Dashashrutskandh Aadi 3agams
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 16
________________ दशा-२, मूलं-३, [नि-१४] भिक्खं गिण्हइ । तेअनिक्खित्तं गिण्हइ दितावेइ वा, अप्पाणं परं वा चीअति अभिसंधारेइ वा कंदाइ गिण्हइ संघट्टेणं वा भिक्खं गेण्हइ, बेइंदिएहिं पंथो संसत्तो तेन वच्चति आहारं व संसत्तं गिण्हति । एवं तेइंदिय-चउरिदिय-पंचेदियाभंडुक्किलियाई पंथे ववरोवेज । सुसावातो पयलाउल्ले मरुए पञ्चक्खाणेयगमनपरियाए समुद्देससंखडीखुड्डएयपरिहारियमुहीउअवस्सगमनं, दिसासु एगकुले चेव एगदव्वे पडियाक्खेित्ता गमणं, पडियाइखित्ता य भुंजणं, सव्वत्थ सुहुममुसावादो। ___ अदिन्नादानंलोइयलोउत्तरसुहुमबादरसव्वत्थअतिकमादि।आउट्टियाएअनंतरहिताएपुढवीए सुत्तं-तिरोऽन्तद्धने न अंतरिता अनंतरिता सचेतना इत्यर्थः । अनमि थंडिल्ले वेजमाणे हाणं काउस्सग्गो शयनंवा निसीयणंवा चेतमाणे करेमाणे, ससिणद्धा हेहितो दगवालुयाए ससरक्खा अचित्ता-सचित्तरएणंअभिग्धत्थाअभिन्नोपुढवी भेदो, आउट्टियाए चित्तमंताए सुत्तंउच्चारेतव्वं, चित्तमंता-सचेतना सिला सवित्थारोपाहाणविसेसोलेल्लु-मट्टिया पिंडो कोला-धुणातेसिंआवासो कोलावासो। दारुए जीवपतिहिते जीवा तदंतंर्गता जीवेहिं पइट्टिते पुढवादिसु, सह अंडेहिं सांडा लुता, पुडगंडगादि सह पाणेहिं सपाणा पाणा बेइंदियादि, सह वीएहिं सबीए बीया सालिमादि, सह हरितेहिं सहरिते, सहओस्साए सतोस्से, सह उदगेण सउदगेओत्तिगा गद्दभगा कीडियानगरं वापणओउल्ली दगण मिस्सा मट्ठिया दयमट्टिया, मक्कडगा-लूतापुडगासंताणओकीडिआसंचारतो ट्ठाणं काउस्सग्गादी सेज्जासयणीयं निसीहियां जत्थ निविसति चेतेमाणे-करेमाणे । आउट्टिआए मूलभोयणं वा सुत्तं उच्चारेव्वं । मूलामूलगअल्लयादि, कंदा-उप्पल-कंदगादि, पत्ता-तंबोलपत्तादि, पुप्फा-मधुगपुष्पादि, फला-अंबफलादी, बीया-सालिभादि, हरिता-भतूणगादि।अंतो संवच्छरस्स सुत्ता दोन्नि-अंतो अभितरतो संवत्सरस्स दसगलेवा माइट्ठाणाणि वा करेति तो सबलो भवति, आरेण न होति । आउट्टियाए सीतोदगवग्धारिएण सुत्तं-वग्घारितो-गलंतो एवं ताव चरित्रं प्रति सबला भणिता दरिसणं प्रति संकादि शृणाणे काले विनये बहुमाणे गाथा । एकवीसत्ति। दसा-२ समाप्ता मुनिदीपरत्नसागरेण संशोधिता सम्पादिता द्वितीयादसा सनियुक्तिः सचूर्णिकः समाप्ता। (दसा-३-आशातना) चू. आसादनाए सबलो भवति । एतेनाभिसंबंधेण आसादज्ञयणं पन्नत्तं, तस्स उवक्कमादि चत्तारिदारावनेउंअधिगारोसेअनासादनाए, तप्परिहरणत्थं आसादनाओवन्निजंति।नामनिप्फसे निक्खेवेआसादनत्ति, षड् विसरण-गत्यवसादनेषु।आयंसादयतिआसादना।अहवा स्वादखई आस्वादने इत्येतस्य धातो रूपं वेति आस्वादना तत्थ गाहा - नि.[१५] आसायणाओ दुविहा मिच्छा पडिवजणा य लाभे । .. लाभे छक्कंतं पुनं इट्ठमनिटुंदुहेक्केकं ॥ चू. आसादना दुविधा मिच्छापडिवत्तित्तो य लाभे य । तत्थ लाभे छक्कंनामादी । नामट्ठवणाए पूर्ववत् । दव्वक्खेत्तकालभावा एकेका दुविधा-इट्ठा यअनिट्ठाय।तत्थ द्रव्यं प्रति निजराए लाभो इट्ठो अनिट्ठो अनिट्ठो तधा नि. [१६] साहू तेने ओग्गह कंत्तारविआल विसममुहवाही। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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