Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 12 Author(s): Jinendravijay Gani Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala View full book textPage 6
________________ संपादकीय निवेदन श्रुतने धारण करवा माटे पण समर्थ बनी शकशे. 2, 5, के 10, 20 सूत्र कंठस्थ करनारा अने पुरतो प्रयत्न थाय तो लगभग अक लाख श्लोक प्रमाण मूल सूत्रो कंठस्थ करी धारी राखनारा अनेक गणो मुनिवरोमां थइ शकशे. 'ज्ञानधनाः साधवः' 'शास्त्रचक्षुषः साधवः' अ विधान मुजब श्रमण संघना प्राण समान आ आगम सूत्रोनु श्री श्रमण भगवंतो द्वारा विशेष परिशीलन थतां श्रीसंघने माटे श्री शासन ने माटे घणी उज्वलता फेलाशे. अने ओ आशयथी स्वपरना श्रेयकारी आगम सूत्रोनां संशोधन संपादन रूप श्रुतभक्तिमा स्वपरना श्रेयनी भावना पूर्वक रस लइ रह्यो छु. चरम तीर्थपति श्रमण भगवान महावीर देवे प्रकाशेल जिनवाणीनो प्रभाव पांचमा आराना छेडा सुधी रहेशे. अ ज्वलंत जिनवाणीनो प्रकाश आपणा आत्माने अजवालनारो बने ते माटे योग्यता अने अधिकार मुजब जिनवाणीनी उपासना भक्तिमां भावोल्लासपूर्वक सौ आराधनामा उजमाल बनी एज मारा अंतरनी शुभ भावना छे. वीर सं० 2502 वि० सं० 2032 / मागशर सुद 3 शुक्रवार श्री तपागच्छ जैन उपाश्रय घाटकोपर, मुंबई हालारदेशोद्वारक कविरत्न पूज्य आचार्यदेव श्रीमद्विजय अमृतसूरीश्वरजी महाराजानो चरणसेवक -पं० जिनेन्द्रविजय गणी 1MROPage Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 226