Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 03 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 13
________________ 162 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः चेव. अणद्वादंडे चेव, नेरइयाणं दो दंडा पन्नत्ता तंजहा-अट्ठादंडे य, अणट्ठादंडे य, एवं चउवीसा दंडयो जाव वेमाणियाणं ॥सू० 61 // दुरिह दंसणे पन्नते तंजहा–सम्मसणे चेव मिच्छादंसणे चेव 1, सम्मसणे दुविहे पन्नत्ते तंजहा-णिसग्गसम्मइसणे चेव अभिगमसम्मइंसणे चेव 2, णिसग्गसम्मदसणे दुविहे पन्नत्त तंजहा-पडिवाई चेव अपडिवाई चेव 3, अभिगममम्मदंसणे दुविहं पन्नते तंजहा-पडिवाई चेव अप्पडिबाई चेव 4, मिच्छादसणे दुविहे पंन्नने तंजहा-अभिग्गहियमिच्छा. दंसणे चेव अणभिगहियमिच्छादसणे चेव 5, अभिग्गहियमिच्छादंसणे दुविहे पन्नत्त तंजहा-सपजवसिते चेव अपजवसिते चेव 6, एवमणभिगहितमिच्छादसणेऽवि 7 ॥सू० 70 // दुविहे नाणे पनत्ते तंजहा-पच्चवखे चेव परोक्खे चेव 1, पच्चक्खे नाणे दुविहे पनते तंजहा-केवलनाणे चेव णोकेवलनाणे चेव 2, केवलणाणे दुविह पनत्ते तंजहा-भवत्थकेवलनाणे चेव सिद्धकेवलणाणे चेव 3, भवत्थकेवलणाणे दुविहे पन्नत्ते तंजहा–सजो. गिभवत्थकेवलणाणे चेव, अजोगिभवत्थकेवलणाणे चेव 4, सजोगिभवस्थकेवलणाणे दुविहे पन्नत्ते तंजहा-पढमसमयमजोगिभवत्थकेवलणाणे चेव अपढमसमयसजोगिभवत्थकेवलणाणे चेव 5, ग्रहवा चरिमसमयसजोगिभवत्थकेवलणाणे चेव अचरिमसमयसजोगिभवत्थकेवलनाणे चे 6, एवं अजोगिभवत्थकेवलनाणेऽवि 7-8, सिद्धकेवलणाणे दुविहे पनत्ते तंजहाश्रणंतरसिद्धकेवलणाणे चेव परंपरसिद्धकेवलनाणे चेव 1, अणांतरसिद्धकेवलनाणे दुविहे पन्नत्ते तंजहा-एकागांतरसिद्धकेवलणाणे चेव अणेकाणंतरसिद्धकेवलणाणे चेव 10, परंपरसिद्धकेवलनाणे दुविहे पन्नत्ते तंजहाएकपरंपरसिद्धकेवलणाणे चेव अणेकपरंपरसिद्धकेवलणाणे चेव 11, णोकेवलणाणे दुविहे पन्नने तंजहा-श्रोहिणागो चेव मणपजवणाणे चे 12, श्रोहिणाणे दुविहे मन्नत्ते तंजहा-भवपञ्चइए चेव खग्रोवसमिए चेव 13,

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