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किया गया है। जैसे अंकुश, अंकुर, अङ्गारक, अङ्गद ।
६. देशी शब्दों के आगे कोष्ठक में (दे०) देशी शब्द का सूचक है। कहीं-कहीं कोष्ठक में देशी शब्द का अर्थ भी दिया गया है। जैसे अगड (दे०, अवट), अणागलिय (दे०, अपरिमित), अचाइ (दे०, अशक्त) ।
७. समासान्त पदों के कारण जो शब्द अन्त में आया हो, उसे कोष्ठक में दिया गया है और उसका संस्कृत रूप संलग्न दिया गया है। जैसे
मणिकायकंसपायाणि, आ० चू०६।१३ मणि (पाय)=(मणिपात्र) काय (पाय)= (कायपात्र)
कंस (पाय)=(कांस्यपात्र) ८. धातुरूप, अव्यय, क्त्वा, यप, तुम् प्रत्ययान्त रूपों, संख्यावाची शब्द तथा सर्वनाम के एक-एक प्रमाण दिए
६. धातुओं के उपलब्ध सभी विभक्तियों के रूप मूल धातु के अन्तर्गत दिए गए हैं। उनके सब प्रमाण-स्थलों का निर्देश नहीं किया गया है। जैसे
-गच्छ (गम्) गच्छई, आ०६।१।१०. सू० ११११४६. सम० ३३।१. भ० २।५४. नाया० १३१३१५१ ।
१०. जिन्नन्त की धातुओं का स्वतन्त्र ग्रहण किया गया है। भावकर्म आदि धातुओं का मूल धातु के अन्तर्गत ही ग्रहण किया गया है । संस्कृत धातुओं को प्राकृत में जो आदेश होते हैं, उनका मूल संस्कृत धातु रूप लिया गया है। जैसे
देह (दृश्) । जोइज्जमाण (दृश्यमान)। णूम (छाद्य)। दूमण (धवलम) । पर (भ्रम्) । जो धातुएं केवल प्राकृत में हैं संस्कृत में नहीं, उनके आगे कोष्ठक में (दे०) शब्द देशी धातु पद का सूचक है । जैसे
खोड (दे०) खोडिज्जंति, भ० १३।३६ ।
११. जहां संयुक्त शब्दों में एक देशी शब्द है, वहां कोष्ठक में उसे ज्यों का त्यों रखा गया है। पादटिप्पण में उसका (दे०) संकेत दिया गया है। जैसे
अंबचोयग (आम्रचोयग)।
प्रस्तुत कोश का शब्द-संचय
इस कोश में तीन प्रकार के शब्द उपलब्ध हैं—तत्सम, तद्भव और देशी । १. तत्सम-संस्कृत और प्राकृत में समान रूप वाले शब्द तत्सम (संस्कृत सम) होते हैं, जैसे
अभय, अभाव, आगम, गुण, गंगाकूल, गागर, घोर, चंचल, चम्, छंद, जीव, जाति, झंझा, टंकण, डिडिम, तंतु, तगर, तत, दंत, दधि, देव, धरणि, नख, नगर, नदी, नवनीत, नाली, निंब, पंक, फल, बंध, बंधु, बल, बादर, भंग, भंभा, मंगल, मंडल, रवि, रस, लंब, लंचा, लता, वडभ ।
२. तद्भव-जिन संस्कृत शब्दों का वर्ण-लोप, वर्णागम और वर्ण-विपर्यय द्वारा प्राकृतीकरण होता है, वे तद्भव (संस्कृतभव) कहलाते हैं । जैसेअंधकार-अंधगार
अभग्न-अभग्ग अमृतवर्षा-अमियवासा
क्षीण-खीण अमूच्छित-अमुच्छित
गर्हित-गरहिय अग्रन्थ-अगंथ
ग्रन्थिका-गंठिया अभयदान-अभयदाण
गृह-घर
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