Book Title: Agam Shabdakosha
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 16
________________ अ अ [अ] निषेधार्थक, अभावार्थक अव्यय सू० २२/३२, ५७, ५८, ६२, ७५ २।७।२२. सम० १०/७ Jain Education International [ अति + पत्] - अइपतति, आ० चू० २।३० [ अतिपूज्य ] नाया० १।७।४४/७ अइपत अइपुज्ज अइबल [ अतिबल ] सम० प्र० २५६ । १. भ० ६१४६, अ [च] सम० १२ २२ अ [ अति ] सू० १।३।५२. नाया० १।१।७२ अइ [ अपि ] भ०८।२४७ अइ [ अथि] नाया० १।१६।२७२ अइ [ आ + इ ] – अइति; पण्हा० ७।२० अइअच्च [ अतिगत्य ] आ० ६।३८ अज्माण [ अतिवर्त्यमान] नाया० १||१० अइकाय [अतिकाय ] भ० ३।२७५।२. नाया० ११६२० अइक्कंत [अतिक्रान्त ] भ० ७।३४। १. नाया० १ । १ । ४६. पहा० ४।१२ अइक्कम [ अति + क्रम् ] - अइक्कमइ; भ० १।४३७ अइक्कममाण [ अतिक्रामत् ] भ० १।४३७, ४३६ अइगच्छमाण [ अतिगच्छत् ] नाया० १।१।१५३ से १५५, १८६ अइगमण [ अतिगमन ] नाया० १।२।११, २८, ३२ अइगय [ अतिगत ] नाया० १।१।१६० अइचर [ अति + चर्] - अइयरंति, सू० २७ १० अइच्च [ अतीत्य ] सू० १।७।२८ अइजागरय [ अतिजागरक ] नाया० १ १६ ३६ अइदुक्कर [ अतिदुष्कर ] ठा० ४।४३४ अइदूर [ अतिदूर ] आ० चू० १।१३६, नाया० ११ ६६; १।५।१७ १।१४/८५, २०४; २।१।४. उवा० १५, २०, ४६ २।१० ३।१० ४ १०; ५॥१०; ६।१०; ७।१५ ३५; ८ ११; ६।१०; १०।१०. अइवट्ट [ अतिवर्त ] सू० १|४|३३ अंत० २६१. विवा० १।१।२५ अध्य [ अतिधूत ] सू० २।२।३१ अपंडुकबलसिला [अतिपाण्डुकम्बलशिला ] ठा० ४।३१७ १ १६३; पण्हा० ४।५ अभय [ अतिभद्रक ] नाया० १।१६।१८५ अइमत्तपाणभोयणभोइ [अतिमात्रपानभोजनभोजिन् ] आ०चू० १५०६८ अइमुत्त [ [ अतिमुक्त ] भ० ५७६ से ८२. अंत० ३।३२; ६० १५ अ०; ६ ७७ ७६ से ८१, ८३ से ८६,८८ से ६६ अइया [ अजिका ] नाया० १।१।१५६, १६७ अइयार [ अतिचार ] ठा० ३।४४२. सम० प्र० ९५ अइर [ अचिर] सम० प्र० २३५।१. नाया० १११६ । २५८ अइरत्तकंबल सिला [ अतिरक्त कम्बलशिला ] ठा० २१३४३ अइरा [ अचिरा ] सम० प्र०२२१।२ अइरित्त [ अतिरिक्त ] आ० २।४६. नाया० १६६६ पण्हा० १०/६ अइरेग [ अतिरेक ] ठा० २।४५३८।८६. सम० ११४१७ १८६५; १७६; २४/५ ६ २६८; ३१।४; ३३।३३; ५३ । १; ७६/४; ६६।४. प्र०१३, ७३, ८४, ६३, १६० भ० ३।११३, ५८, १०. नाया० १।१।२४ अइरेय [ अतिरेक ] नाया० १|१|३३ अइवइत्ता [ अतिवर्त्य ] सू० २ २ ५६. अइवइत्ता [ अतिपत्य ] नाया० १।६।४. पहा० ३१७ अइवत्त [ अति + वृत्] - अइवत्तई, आ० | १७ अवयंत [ अतिव्रजत् ] नाया० १।१।१६. अंत १।१७; ३।११६ अइवयमाण [ अतिव्रजत् ] नाया० १।५।२३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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