Book Title: Agam Sahitya ka Paryalochan Author(s): Kanhaiyalal Maharaj Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf View full book textPage 8
________________ Jain Ed ८१६ : मुनि श्री हजारीमल स्मृति ग्रन्थ : चतुर्थ अध्याय क्रमांक १ अंगसूत्रों के नाम आचारांग सूत्रकृताङ्ग स्थानांग समवायांग भगवती ज्ञाताधर्मकथा * एकादशाङ्गों का उद्देशन काल' उद्देशन काल "" ८५ ३३ २१ १ ६५ ** २६ 11 33 33 "" क्रमांक ७ ८ ε १० ११ अंगसूत्रों के नाम उपासक दशा अन्तकृद्दशा अनुतरोपपातिकदशा प्रश्नव्याकरण विपाकश्रुत उद्देशन काल "7 १० १० ' ६ उपांग, छेदसूत्र, मूलसूत्र आदि आगमों के उद्देशनकालों का कहीं उल्लेख नहीं मिलता है अतः इसका अध्ययन वाचनाचार्य के समीप न करके स्वतः करें तो कोई हानि नहीं है, ऐसी मान्यता परम्परा से प्रचलित है. " १०" ४५ " २० बहुत होने के लिए निर्धारित पाठ्यक्रम कितने वर्ष के दीक्षापर्याय वाला श्रमण किस आगम के अध्ययन का अधिकारी होता है, इसकी एक नियत मर्यादा बत लाई गई है. वह इस प्रकार है *** " ३२६ दिन. तीन वर्ष के दीक्षापर्याय वाला आचार प्रकल्प ( निशीथ सूत्र) के अध्ययन का अधिकारी माना गया है. इसी प्रकार चार वर्ष के दीक्षापर्याय वाला सूत्रकृतांग के पाँच वर्ष वाला दशाश्रुतस्कन्ध, कल्प एवं व्यवहार के, आठ वर्ष वाला स्थानांग और समवायांग के, दस वर्ष वाला भगवती के, ग्यारह वर्षवाला, क्षुल्लिकाविमान आदि पांच आगमों के बारहवाला अरुणोपपात आदि पांच आगमों के, तेरह वर्ष वाला उत्थान श्रुतादि चार आगमों के, चौदहवर्षं वाला आशिविषभावना के, पन्द्रह वर्षावाला दृष्टिविषभावना, सोलह वर्ष वाला चारणभावना, सत्तरह वर्ष वाला महास्वप्न भावना के अठारह वर्ष वाला तेजोनिसर्ग के, उन्नीस वर्ष वाला दृष्टिवाद के और बीस वर्ष के दीक्षापर्याय वाला सभी आगमों के अध्ययन के योग्य होता है.' -व्यवहार, उद्देश्यक १० उपाध्याय और प्राचार्य पद की योग्यता प्राप्त करने के लिए आगमों का निर्धारित पाठ्यक्रम तीन वर्ष की दीक्षा पर्याय वाला श्रमण यदि पवित्र आचरण वाला, शुद्ध संयमी, अनुशासन में कुशल क्षमावान, बहुश्रुत *** १. समवायांग और नंदीसूत्र के अनुसार यहाँ ग्यारह अंगों के उद्देशन काल लिखे हैं. समवायांग में ज्ञाताधर्मकथा के उद्देशन काल २६ लिखे हैं और नंदीसूत्र में १६ उद्देशन काल हैं. २. समवायांग का एक उद्देशन काल ही क्यों है, यह विचारणीय है. उपासकदशा आदि कई श्रागम समवायांग की अपेक्षा लघुकाय हैं किन्तु उनके उद्देशन काल १० से कम नहीं. ३. समत्र्यांग और नन्दी सूत्र में भगवती सूत्र के उद्दशनकाल नहीं लिखे-किन्तु भगवतीसूत्र की प्रशस्ति में उद्देशन कालों की एक सूची है उसके अनुसार उद्दे शनकाल लिखे हैं. ४. प्रारम्भ के ६ अंगों के अन्त में उद्देशनकालों का उल्लेख नहीं है और अंतिम ५ अंगों के अन्त में उद्देशनकालों का उल्लेख है. ५. प्रश्नव्याकरण के ४५ उद्देशनका समवयांग और नंदीसूत्र में लिखे गये हैं. किन्तु यह विलुप्त हो गया है. वर्तमान में उपलब्ध प्रश्नव्याकरण के अंत में १० उद्देशन काल लिखे हैं. ६. वीस वर्ष के इस लम्बे पाठ्यक्रम में आचारांग ज्ञाताधर्मकथा उपासकदशा अंतकदशा अनुत्तरोपपातिकदशा प्रश्नव्याकरण विपाकश्रुत तथा सर्व उपांग एवं मूलसूत्रों के अध्ययन का उल्लेख नहीं है, किन्तु आचारांग नियुक्ति गाथा १० में नवदीक्षित के लिए सर्वप्रथम आचा रांग के अध्ययन करने का उल्लेख है तथा दशवैकालिक उत्तराध्ययन नंदि आदि आगमों का अध्ययन भी नवदीक्षितों को कराने की परिपाटी अद्यावधि प्रचलित है. इन विभिन्न मान्यताओं का मूल क्या है ? यह अन्वेषणीय है. *** www.sinelibrary.orgPage Navigation
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