Book Title: Agam Sahitya ka Paryalochan Author(s): Kanhaiyalal Maharaj Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf View full book textPage 6
________________ www www. ८१४ मुनि श्रीहजारीमल स्मृति ग्रन्थ : चतुर्थ अध्याय चौदह पूर्वो के नाम १. उत्पाद पूर्व २. अग्रणीय, ३. वीर्यं 17 ४. अस्तिनास्तिप्रवाद पूर्व ५. ज्ञानप्रवाद पूर्व ६. सत्यप्रवाद ७. आत्मप्रवाद ८. कर्मप्रवाद ६. प्रत्याख्यानप्रवाद पूर्व 11 १०. विद्यानुप्रवाद ११. अवध्य १२. प्राणायु १३. क्रियाविशाल १४. लोकबिन्दुसार 13 33 Jain Education temational पदपरिमाण १ करोड़ ६६ लाख ७० लाख ६० लाख ६६ लाख ६६ हजार ६६६ १ करोड़ ६ २६ करोड़ १ करोड़ ८० हजार ८४ लाख १ करोड १० लाख २६ करोड़ १ करोड ५६ लाख ९ करोड़ १२३ करोड शेष आगमों (उपांग, छेद, मूल, और प्रकीर्णकों) के पदों की संख्या का उल्लेख किसी आगम में नहीं मिलता. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के पद' ३०५००० थे. चन्द्रप्रज्ञप्ति के पद ५५०००० थे. सूर्यप्रज्ञप्ति के पद ३५०००० थे. नंदीसूत्र की चूर्णि में द्वादशांग श्रुत को पुरुष रूप में चित्रित किया है. जिस प्रकार पुरुष के हाथ पैर आदि प्रमुख अंग होते हैं, उसी प्रकार पुरुष के रूप में श्रुत के अंगों की कल्पना पूर्वाचार्यों ने प्रस्तुत की है आचारांग और सूत्रकृतांग श्रुत-पुरुष के दो पैर स्थानांग और समवायांग पिंडलियाँ भगवती सूत्र और ज्ञाताधर्मकथा दो जँघायें हैं उपासकदशा पृष्ठ भाग अंतकृद्दशा दशा अग्रभाग ( उदर आदि ) अनुत्तरोपपातिक और प्रश्नव्याकरण दो हाथ विपाकश्रुत ग्रीवा और दृष्टिवाद मस्तक है (देखिए चित्र ) द्वादश उपांगों की रचना के पश्चात् श्रुत-पुरुष के प्रत्येक अंग के साथ एक-एक उपांगकी कल्पना भी प्रचलित १. केवल इन तीन उपाङ्गों के पदों का उल्लेख स्व० आचार्य श्रीअमोलक ऋषिजी महाराज ने जैन तत्त्व प्रकाश (संस्करण में) में किया है किन्तु चन्द्रप्रप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति के पदों में इतना अन्तर क्यों है ? अनुत्तरोपपातिक दश कलपावसा For Privs Use On १२ दृष्टि बाद १२ कृष्णि दशा ११ पुष्प चूलिका ८ निरयाबलिका कल्पिका ८] अन्तकृत् दशा ७ चन्द्र प्रज्ञप्ति उपासकदशा १७ पृ.भा. ५ भगवती सूत्र पूजबूदीप प्रज्ञप्ति ११ ३ जीवाभ ३ स्थानाङ १ आचारा १ औपपातिक ६ सूर्य प्रज्ञप्ति ६ ज्ञाता धर्मकथा ४ समवायाङ्ग ४ प्रज्ञापना 2 सूत्रकृताङ्ग २ राय प्रश्नीय १० पुष्पिका १० प्रश्न व्याकरण www.jalnelibrary.orgPage Navigation
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