Book Title: Agam Sahitya ka Paryalochan
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf

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Page 10
________________ wwiiiiiiiiii १ मुनि श्री हजारीमल स्मृति ग्रन्थ : चतुर्थ अध्याय आवश्यक व्यतिरिक्त के २ भेद हैं-कालिक' और उत्कालिक इनकी सूची इस प्रकार है ૨ उत्कालिक सूत्र—१ दशवैकालिक, २ कल्पिकाकल्पिक, ३. चुल्ल (लघु) ३ कल्पसूत्र, ४ महाकल्प सूत्र, ५ औपपातिक, ६ राजप्रश्नीय, ७ जीवाभिगम, ८ प्रज्ञापना, ६ महाप्रज्ञापना, १० प्रमादाप्रमादम्, ११ नंदीसूत्र, १२ अनुयोगद्वार, १३ देवेन्द्रस्तव, १४ तंदुल वैचारिक, १५ चन्द्रावेष्यक, १६ सूर्य प्रज्ञप्ति, १७ पौरुषी मंडल, १८ मंडल प्रवेश, १६ विद्याचरणविनिश्चय, २० गणिविद्या, २१ व्यानविभक्ति, २२ मरणविभक्ति, २३ आत्मविशोंधि, २४ वीतराग श्रुत २५ संलेखना श्रुत, २६ विहारकल्प २७ चरणविधि, २८ आतुरप्रत्याख्यान, २६ महाप्रत्याख्यान, इत्यादि. कालिक सूत्र - १ उत्तराध्ययन, ३ २ दशा [दशाश्रुतस्कन्ध], ३ कल्प [ बृहत् कल्प], ४ व्यवहार, ५ निशीथ, ६ महानिशीथ, ७ ऋषिभाषित जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति २ द्वीपसागर प्रज्ञप्ति १० चन्द्र प्रज्ञप्ति ११ क्षुद्रिका विमान प्रविभक्ति, १२ महल्लिका प्रविभक्ति १३ अंग पुलिका १४ वर्ग पूलिका, १५ विवाह जुलिका १६ अरुणोपपात १७ वरुणोपपात १० पपात १ परणोपपात २० वैधमनोपपात २१ वैनधरोपपात २२ देवेन्द्रोपपात २३ उत्थानत, २४ समुत्थानश्रुत, २५ नागपरिज्ञाणिका ३६ निरयावलका २७ कल्पिक २० कल्पासिका २१ पुष्पिका, २० पुण चूलिका, ३१ वृष्णिदशा, ३२ आशिविष भावना, ३३ दृष्टिविष भावना, ३४ स्वप्न भावना, ३५ महास्वप्न भावना, ३६ तेजोग्नि निसर्ग. श्रागम के दो भेद – लौकिक और लोकोत्तर अनुयोगद्वार में केवल आचारांगादि द्वादशांगों को ही लोकोत्तर आगम माना है. इसी प्रकार लोकोत्तर श्रुत भी आचारांग आदि द्वादशांग ही माने गये हैं. आगम के दो भेदमिक और अगमिक, गमिक दृष्टिवाद, अगमिक कालिकसूत्र आगम के तीन भेद - ( १ ) सूत्रागम ( २ ) अर्थागम (३) तदुभयागम. सूत्रागम-- मूलरूप आगम को सूत्रागम कहते हैं. अर्थागम - सूत्र - शास्त्र के अर्थरूप आगम को अर्थागम कहते हैं. तदुभयागम-सूत्र और अर्थ दोनों रूप आगम को तदुभयागम कहते हैं. -अनुयोगद्वारसूत्र १४३ आगम के और तीन भेद हैं- ( १ ) आत्मागम (२) अनन्तरागम ( ३ ) परम्परागम. आत्मागम - गुरु के उपदेश विना स्वयमेव आगमज्ञान होना आत्मागम है. जैसे- तीर्थंकरों के लिए अर्थागम आत्मागम रूप है और गणधरों के लिए सूत्रागम आत्मागमरूप है. Jain Education Internal १. (क) कालिक और उत्कालिक वर्गीकरण का रहस्य क्या है, यह अब तक दृष्टि पथ में नहीं आया. (ख) यहां उत्कालिक सूत्र २६ के नाम लिखे हैं किन्तु अन्त में 'इत्यादि का कथन होने से अन्य नाम का होना भी सम्भव है. (ग) कालिक सूत्रों के अन्त में 'इत्यादि' का उल्लेख नहीं है अतः अन्य सूत्रों का परिगणन करना उचित नहीं माना जा सकता है. २. सूर्य प्रज्ञप्ति को उत्कालिक और चन्द्र प्रज्ञप्ति को कालिक मानने का क्या कारण है जबकि दोनों उपांग हैं और दोनों के मूल पाठों में पूर्ण साम्य है ? ३. उत्तराध्ययन यदि भ० महावीर की अन्तिम श्रपुटु वागरणा है तो उसे अंगबाह्य कैसे कहा जा सकता है, यह विचारणीय है. क्योंकि सर्व कथित और गणधरमथित आगम अंगप्रविष्ट माना जाता है. ४. नंदीसूत्र में निर्दिष्ट इस वर्गीकरण से एक आशंका पैदा होती है-कि उत्कालिक सूत्र गमिक हैं या अगमिक ? क्योंकि केवल कालिक सूत्र अगमिक हैं. नंदी सूत्र में कालिक और उत्कालिक ये दो भेद केवल अंग बाह्य सूत्रों के हैं - अतः अंगप्रविष्ट अर्थात् - ग्यारह अंग कालिक हैं या उत्कालिक, यह ज्ञात नहीं होता. ग्यारह अंग गमिक हैं या अगमिक ? यह भी निर्णय नहीं होता. परम्परा से ग्यारह कोमिक और कालिक मानते हैं किन्तु इसके लिए आगम प्रमाण का अन्वेषण आवश्यक है. ५. अनुयोगद्वार में कालिक श्रुत को और दृष्टिवाद को भिन्न-भिन्न कहा है अतः दृष्टिवाद कालिक है या उत्कालिक ? यह भी विचारणीय है, क्योंकि नंदी सूत्र में कालिक एवं उत्कालिक की सूची में द्वादशांगों का निर्देश नहीं है. Que e www.cary.org

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