Book Title: Agam Sahitya ka Paryalochan
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf

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Page 1
________________ Jain Ed मुनि श्री कन्हैयालालजी 'कमल' न्यायतीर्थं आगम साहित्य का पर्यालोचन श्रागमसाहित्य का महत्त्व आगमसाहित्य भारतीय साहित्य का प्राण तो है ही, आध्यात्मिक जीवन की जन्मभूमि एवं आर्य संस्कृति का मूल्यवान् कोश भी है. विश्व के समस्त पंथ, मत या सम्प्रदायों के अपने-अपने आगम हैं. इनमें जैनागम साहित्य अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है. जर्मनी डा० हर्मन जेकोबी, डा० शुब्रिंग' आदि अनेक प्रसिद्ध विदेशी विद्वानों ने जैनागमों का अध्ययन करके विश्व को यह बता दिया कि अहिंसा, अनेकान्त अपरिग्रह एवं सर्वधर्मसमन्वय के चितन-मनन से परिपूर्ण एवं आध्यात्मिक जीवन से आलो कित आगम यदि विश्व में हैं तो केवल जैनागम हैं. -आ-उपसर्ग और गम् धातु से आगम शब्द की रचना हुई है. आ उपसर्ग का अर्थ 'समन्तात्' अर्थात् गति - प्राप्ति है. श्रागमशब्द की व्याख्यापूर्ण है, गम् धातु का अर्थ आगम शब्द की व्युत्पति जिससे वस्तुतत्व [पदार्थरहस्य] का पूर्ण ज्ञान हो ज्ञान हो वह आगम है. जिससे पदार्थों का मर्यादित ज्ञान हो वह आगम है. आगम कहा जाता है. उपचार से आप्त वचन भी आगम माना जाता है. 3 --- वह आगम है जिससे पदार्थों का दा आप्तवचन से उत्पन्न अर्थ [पदार्थ ] ज्ञान अंग आगम वीतरागवाणी है जैनागमों [अंगों] में वीतराग भगवान् की वाणी है. वीतरागता का अर्थ है रागरहित आत्मदशा. जहां द्वेष वहां राग है जहां राग नहीं वहां द्वेष भी नहीं. क्योंकि राग और द्वेष अविनाभावी हैं. किंतु इनकी व्याप्ति अग्नि और धूम की तरह की व्याप्ति है. अतः जहां राग है वहां द्वेष होता ही है. जहां राग हो वहां द्वेष कभी नहीं भी होता है, इसलिए सर्वत्र 'वीतराग' शब्द का ही प्रयोग हुआ है. वीतद्वेष शब्द का नहीं. सराग दशा रागद्वेष से युक्त आत्मदशा है, मायापूर्वक मृषा भाषण इस दशा में ही होता है, इसलिए सरागदशा का कथन सर्वथा प्रामाणिक नहीं होता. जैनागमों की प्रामाणिकता का मूलाधार यही है. यद्यपि अंग आगमों का अधिकांश भाग नष्ट हो गया है और जो है उसमें कतिपय अंश पूर्ति रूप हैं, परिबधित हैं, फिर भी उसमें वीतरागवाणी सुरक्षित है. जो पूर्ति रूप है, परिवर्धित हैं वह भी वीतराग वाणी से विपरीत नहीं है. १. आसमन्ताद् गम्यते वस्तुतत्त्वमनेनेत्यागमः. २. आगम्यन्ते मर्यादयाऽवयुद्ध यन्तेऽर्थाः अनेनेत्यागमः. ३. आ अभिविधिना सकल श्रुतविपयव्याप्तिरूपेण, मर्यादया वा यथावस्थितप्ररूपणारूपया गम्यन्ते - परिच्छिद्यन्ते श्रर्थाः येन स आगमः ४. आप्तवचनादाविभू तमर्थसंवेदनमागमः उपचारादाप्त वचनं च. or Srivate & Personal velibrary.org

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