Book Title: Agam Sahitya ka Paryalochan
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf

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Page 7
________________ मुनि कन्हैयालाल 'कमल' : श्रागम साहित्य का पर्यालोचन: ८१५ होगई. यहाँ पहले अंग का और उसके सामने उसके उपांग का उल्लेख किया जाता है १ आचारांग २ सूत्रकृताँग औपपातिक सूत्र राजप्रश्नीय ३ स्थानांग जीवाभिगम ४ समवयांग ५ भगवती सूत्र ६ ज्ञाताधर्मकथा ७ उपासकदशा अंतकृद्दशा अनुत्तरोपपातिकदशा १० प्रश्न व्याकरण ११ विपाकश्रुत १२ दृष्टिवाद प्रज्ञापना जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति सूर्यप्रति चन्द्र प्रज्ञति निरयावलिका कल्पिका कल्पावतंसिका पुष्पिका पुष्पचूलिका वृष्णिदशा श्रुत-पुरुष की कल्पना एक अति सुन्दर कल्पना है. प्राचीन भण्डारों में श्रुतपुरुष के हस्तलिखित कल्पनाचित्र अनेक उपलब्ध होते हैं. मानव शरीर के अंग- उपांगों की संख्या के सम्बन्ध में आचार्यों के अनेक मत हैं, किन्तु यहाँ श्रुतपुरुष के बारह अंग और बारह उपांग ही माने गये हैं : स्थानांग और समवायांग आगम पुरुष की दो जांघें (पिण्डलियां ) हैं. जीवाभिगम और प्रज्ञापना ये दोनों इनके उपांग हैं. किन्तु जाँघों के उपांग पुरुष की आकृति में कौन से हैं ? इसी प्रकार उरू, उदर, पृष्ठ और ग्रीवा के उपांग कौन से हैं ? क्योंकि शरीरशास्त्र में पैरों की अंगुलियों पैरों के उपांग है इसी प्रकार हाथों के उपांग हाथों की अंगुलियाँ, मस्तक के उपांग आँख, कान, नाक, और मुंह हैं. यदि इनके अतिरिक्त और भी उपांग होते हैं तो उनका निर्देश करके आगम पुरुष के उपांगों के साथ तुलना की जानी चाहिए. अंगों में कहे हुए अर्थों का स्पष्ट बोध कराने वाले उपांग सूत्र हैं. प्राचीन आचार्यों के इस मन्तव्य से कतिपय अंगों के उपांगों की संगति किस प्रकार हो सकती है ? यथा— ज्ञाताधर्मकथा का उपांग सूर्य प्रज्ञप्ति और उपासकदशा का उपांग चन्द्रप्रज्ञप्ति माना गया है. इनमें क्या संगति है ? V www "निरावलियाओ" का शब्दार्थ है- नरकगामी जीवों की आवली अर्थात् श्रेणी इस अर्थ के अनुसार एक "कप्पिया" नामक उपांग है. निरयावलियाओ में मानना उचित है. श्रेणिक राजा के काल सुकाल आदि दश राजकुमारों का वर्णन इस उपांग में है. ये दश राजकुमार युद्ध में मरकर नरक में गये थे. कप्पिया नाम की अर्थसंगति इस इकार है कल्प अर्थात् आचार- सावद्याचार और निरवद्याचार, ये आचार के प्रमुख दो भेद हैं, इस उपांग में सावद्याचार के फल का कथन है इसलिए कप्पिया नाम सार्थक है. किन्तु इस प्रकार की गई अर्थसंगति को आधुनिक विद्वान् केवल कष्ट - कल्पना ही मानते हैं. वे कहते हैं-कल्प अर्थात् देव विमान और कल्पों में उत्पन्न होने वालों का वर्णन जिसमें है वह उपांग कल्पिका है. सम्भव है वह उपांग विलुप्त हो गया है. १. भगवती सूत्र का उपांग सूर्यप्रज्ञप्ति और ज्ञाताधर्मकथा का उपांग जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति है. २. "अंगार्थ स्पष्टबोधविधायकानि उपांगानि" औप० टीका. श्री. प - गोपासमाचारी wwwwwww www.jaxbrary.org

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