Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Chandanashreeji
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 8
________________ ( स ) मुनि श्री नथमल जी सम्पादित उत्तराध्ययन ही आदर्श रहे हैं। अत: मैं दोनों का हृदय से आभारी हूँ, अतीत के उस अभिनन्दनीय विद्वद्वरेण्य टीकाकार की भी और वर्तमान के उक्त महनीय मनीषी की भी। बात लम्बी न करूं। भूमिका के लिए आदरणीय पं० श्री विजय मुनि जी की हृदय से कृतज्ञ हूँ। उन्होंने अपने व्यस्त कार्यक्रम में भी समय निकालकर जो लिखा है, वह उनके अप्रतिम पाण्डित्य का परिचायक तो है ही, साथ ही उनके स्नेहशील हृदय का भी परिचायक है। और आशीर्वाद के लिए पूज्य चरण, श्रद्धेय उपाध्याय श्री जी, नाम क्या लिखें, जो अपने नाम के अनुसार कर्म से भी अमर हैं, सहज उदारता की प्रतिमूर्ति के रूप में मेरे मानस-कक्ष में सदा ही समादृत रहेंगे। उनके सहयोग की चर्चा कर मैं सहयोग के उस पावन मूल्य को कम नहीं करना चाहती। समय पर जिनशासन की, श्रमण भगवान् महावीर के महान् आदर्शों की कुछ और सेवा-पूजा कर सकूँ, इसी शुभाशा के साथ ... । -साध्वी चन्दना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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