Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Chandanashreeji
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 16
________________ दिगम्बर-आगम : दिगम्बर-परम्परा का विश्वास है, कि वीर-निर्वाण के बाद श्रृत का क्रम से ह्रास होता गया। यहाँ तक ह्रास हुआ कि वीर-निर्वाण के ६८३ वर्ष के बाद कोई भी अंगधर अथवा पूर्वधर नहीं रहा। अंग और पूर्व के अंशधर कुछ आचार्य अवश्य हुए हैं। अंग और पूर्व के अंशों के ज्ञाता आचार्यों की परम्परा में होने वाले पुष्पदंत और भूतवलि आचार्यों ने षट् खंडागम की रचना द्वितीय अग्राह्यणीय पूर्व के अंश के आधार पर की। और आचार्य गुणधर ने पाँचवें पूर्व ज्ञान-प्रवाद के अंश के आधार पर कषाय पाहुड की रचना की। भूतबलि आचार्य ने महाबंध की रचना की। उक्त आगमों का विषय मुख्य रूप में जीव और कर्म है । बाद में उक्त ग्रन्थों पर आचार्य वीरसेन ने धवला और जय धवला टीकाएँ कीं। ये टीकाएँ भी उक्त परम्परा को मान्य हैं। दिगम्बर परम्परा का सम्पूर्ण साहित्य आचार्यों द्वारा रचित हैं। आचार्य कुन्द-कुन्द के प्रणीत ग्रन्थ-समयसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकायसार और नियमसार आदि भी आगमवत् मान्य हैं। आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती के ग्रन्थ-गोम्मट सार, लब्धिसार, और द्रव्य संग्रह आदि भी उतने ही प्रमाणभूत और मान्य हैं। उत्तराध्ययन सूत्र : __जैन परम्परा की यह मान्यता रही है, कि प्रस्तुत आगम में भगवान् महावीर की अन्तिम देशना का संकलन है। कुछ आचार्यों की यह मान्यता है, कि भगवान् महावीर ने निर्वाण प्राप्ति के पहले ५५ अध्ययन दुःख-विपाक के और ५५ सुख-विपाक के कहे थे, उसके बाद बिना पूछे उत्तराध्ययन के ३६ अध्ययनों का वर्णन किया। इसलिए इसे अपुट्ठ वागरणा-अपृष्ट देशना कहते हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि ३६ अध्ययन समाप्त करके भगवान् मरुदेवी माता का प्रधान नामक ३७वें अध्ययन का.वर्णन करते हुए अन्तर्मुहूर्त का शैलेशीकरण करके सिद्ध-बुद्ध एवं मुक्त हो गए। कुछ आचार्य भगवान् की अन्तिम देशना इसे नहीं मानते । प्रस्तुत आगम के वर्णन को देखते हुए ऐसा लगता है कि स्थविरों ने इसे बाद में संग्रह किया है। कुछ अध्ययन ऐसे हैं, जिनमें प्रत्येक बुद्ध एवं अन्य विशिष्ट श्रमणों के द्वारा दिए गए उपदेश एवं संवाद का संग्रह है। आचार्य : भद्रबाहु ने भी इस बात को स्वीकार किया है, कि इसमें के कुछ अध्ययन अंग साहित्य से लिए हैं। कुछ जिन-भाषित हैं, और कुछ प्रत्येक बुद्ध श्रमणों के संवाद रूप में हैं। जो कुछ भी हो, इतना तो मानना ही पड़ेगा कि प्रस्तुत आगम भाव, भाषा और शैली की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। इसमें सरल एवं सरस पद्यों में और कहीं पर गद्य में भी धर्म, दर्शन, अध्यात्म, योग और ध्यान का सुन्दर निरूपण किया गया ३. उत्तराध्ययन नियुक्ति–गाथा ४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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