Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Samaysundar, Haribhadrasuri, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 10
________________ २ राय धनपतसिंघ बहाउरका जैनागमसंग्रह नाग तेतालीसमा. पांचमुं बकायजीवरक्षणरूप अर्थात् धर्मरूप ते सदामांगलिक ले. तो हवे पांच प्रकारनां मांगलिक कह्यां, तेमां धर्म जे , ते सदा मांगलिक बे,तेमाटें श्रीसिनवाचायें आ दशवैकालिक नामक ग्रंथनी आदिमां धर्मप्रशंसारूप मंगल कमु . वली कोश्क स्थलें मंगल जे जे ते त्रण प्रकारनुं पण कडं . तेमां प्रथम ग्रंथारंन्ने ग्रंथनिर्विघ्नता माटें जे अनीष्ट देवतादिकने नमस्कार करवो, ते आदिमंगल, बीजुं ग्रंथमध्ये जे नमस्कार करवो, ते मध्यमंगल अने ग्रंथने अवसाने शिष्यपरंपरा चालवाने माटें जे नमस्कार करवो, ते अवसानमंगल जाणवू. तेम जोतां ए दशवैकालिक नामक शास्त्रनुं “धम्मो मंगलं" ए आदि मंगल, “नाणदसण संपुन्नं," ए मध्य मंगल अने “ निकम्ममाणा श्य बुद्ध वयणे" ए अवसान मंगल जाणवू. हवे धम्मो मंगल मित्यादि प्रथम सूत्रनो अर्थ लखियें लियें. (अहिंसा के) प्रा. णातिपातविरति अर्थात् सर्वे जीवोनी हिंसा न करवी ते, तथा (संजमो के०) संयमः एटले आश्रवनिरोधते पांच इंजियनो निग्रह, चार कषायनोजय अनेत्रण दंगथी विरति ए सत्तर प्रकारनो संयम,अने (तवो के०) तपः एटले “अणसणमूणोयरिया" इत्यादि वे गाथामां कहेवू बार प्रकारनुं तप ए रूप (धम्मो के०) धर्मः एटले कुगतिने प्राप्त थनारा जीवोने धरीने सन्मार्गे पहोंचाडे ते धर्म ते ( मंगलमुकिळं के) उत्कृष्टं मंगलं, एटले सर्व मंगलमा उत्कृष्ट मंगल . ए धर्मने उत्कृष्ट मंगल कहेवार्नु कारण कहे जे के, (जस्स के ) यस्य एटले जे पुरुष- (धम्मे के ) धर्मे एटले पूर्वोक्त वीतरागनाषित धर्मने विषे ( सया के ) सदा एटले निरंतर ( मणो के०) मनः एटले मन . ( तं के०) तं एटले ते पुरुषने ( देवा वि के ) देवा अपि एटले जवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषी अने वैमानिक ए चार निकायना देवता पण ( नमसंति के ) नमस्यंति एटले नमस्कार करे , तो राजादिक नमस्कार करे, तेमां तो शीज नवा? अर्थात् धर्म जे , ते उत्कृष्ट मंगल के एम सिक थयुं ॥१॥ ॥ अथ श्रीदशवैकालिकावचूरिः प्रारच्यते ॥ ॥ तत्र प्रथमाध्ययनम् ॥ संहितादिः षड्विधा व्याख्या।दुर्गतौ प्रपतन्तमात्मानं धारयतीति धर्मः। मङ्गयते हितमनेनेति मङ्गलम् । संयम आश्रवनिरोधः। तापयत्यनेकनवोपात्तमष्टप्रकारं कर्मेति तपः १ . ॥ अथ श्रीसमयसुन्दरोपाध्यायकृतदीपिका प्रारच्यते ॥ . ॥ तत्र प्रथमाध्ययनम् ॥ ॥ श्रीजिनेश्वराय नमः ॥ स्तम्जनाधीशमानम्य, गणिः समयसुन्दरः॥ दशवैका

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