Book Title: Agam 42 Dasavevaliyam Mulsutt 03 Moolam Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Agam Shrut Prakashan View full book textPage 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra र (9) (२) (1) (*) (4) www.kobatirth.org (t) (७) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नमो नमो निम्न दंसणस्त पंचम गणधर श्री सुषस्वामिने नमः ४२ दसवे आलियं तइअं मूल सुत्तं पढमं अज्झवणं-दुमपुफिया धम्म मंगलमुक्कडं अहिंसा संजमो तनो देवा वि तं नमसंति जस्स धम्मे सया मणो जहा दुमस्स पुष्फेसु भमरो आवियइ रसं नय पुष्कं किलामेइ सोय पीणेइ अप्पर्य एमए समणा मुत्ता जे लोए संति साहुणी विहंगमा य पुप्फेसु दाणमत्तेसणे रया वयं च वित्तिं लब्भामो न य कोइ उवहम्मइ अहागडे रीयंते पुष्फेसु ममरा जहा महुकारसमा बुद्धा जे भवंति अणिस्सिया नाणापिंडरया दंता तेण वुचंति साहुणो त्ति बेमि ● पढमं अज्झयणं समतं ● बीअं अज्झयणं - सामण्णपुव्वयं (c) (3) कहं नु कुना सामण्णं जो कामे न निवारए पए पए विसीयंतो संकम्पस्स वसं गओ वत्यगंधमलंकारं इत्यीओ सयणाणि य । अच्छंदा जे न मुंजंति न से चाइ ति बुझाइ जे व कंते पिए मोण लहे विपिट्ठि कुव्वइ । साहीणे चयइ मोए से हु चाइ ति बुच्चइ सभाइ पहाड़ परिव्ययंतो सिया मणो निस्सरई बहिद्धा । न सा महं नोवि अहं पि तीसे इवेव ताओ विणइज्ज रागं (१०) आयावयाशी चय सोगमल्लं कामे कमाहि कमियं खु दुक्खं । छिंदाहि दो विणइज रागं एवं सुही होहिसि संपराए (११) पक्खंदे जलियं जोई धूमकेउं दुरासयं । नेच्छति वतयं पोत्तुं कुले जाया अगंधणे (१२) घिरत्थु तेऽजसोकामी जो तं जीवियकारणा । वंतं इच्छसि आवेउं सेयं ते मरणं भवे (१३) अहं च भोगरायस्स तं वऽसि अंधगवहिणो । मा कुले गंधणा होमो संजमं निहुओ चर For Private And Personal Use Only दसवे आलयं १/-/9 11911-1 11२11-2 ॥२३॥-3 || ४ || -4 11471-8 ॥६॥ -1 11911-2 ॥८॥ -9 |||| -4 1190115 11991-8 11931-7 ||१३|| -8 •Page Navigation
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