Book Title: Agam 42 Dasavevaliyam Mulsutt 03 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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॥४५४||-1
मापक-१, गोसो (६) तहेव डहरं च महल्लगंवा, इत्यी पुसंपव्यइअंगिहिवा
नोहीलए नो वि यखंसाइजा, भंघकोहं चचएसपुझो ॥४५०||-12 (४६८) जे माणिआ सययं माणयंति, जत्तेण कन्नं व निवेसयंति।।
ते माणएमाणरिहे तवस्सी, जिइंदिए सच्चरएस पुझो ॥५१॥ -13 (४६५) तेसिं गुरुण गुणसायराणं, सुनाण मेहावी सुभासियाई।
घरे मुणी पंचरए तिगुत्तो, चउक्कसायावगए स पुओ ॥४५२|-14 (wo) गुरुमिह सययं पडियरिय मुनी, जिणमयनिउणे अभिगमकुसले । धुणियरयमलंपुरेकर्ड,भासुरमउलंगइंगयत्तिबेमि।। ॥५३॥ -16
नवमं अमपणेताओ उद्देसो सम्पतो.
*च उ त्यो-उदे सो :(r७१)सुयं मे आउसं तेणं पगयया एवमक्खायं-इह खलु धेरेहि भगवंतेहिं चत्तारि विनयसमाहिशणा पत्नत्ता । कयरे खलु ते थेरेहि भगवंतेहिं चतारि विनयसमाहिठाणा पनत्ता इमे खलु ते घेरेहि भगवंतेहिं घत्तारि विनयसमाहिट्ठाणा पत्रत्ता तं जहा-विनयसमाही सुयसमाही, तबसपाही, आयारसमाही॥१६॥ (r७२) विणए सुए अतवे, आयारे निघ पंडिआ।
अभिरामयंति अप्पाणं, जे पर्वति जिइंदिआ (१७३) चउब्विहा खलु यिनयसमाही मथही तं जहा-अनुसासिअंतो सुस्सूसइ, सम्म संपडियाइ, वेयमाराहयइ, नयभवइ अत्तसंपग्गहिए चउत्यं पयं भवइ।१७।
(४७) [भयइइत्य सिलोगो।। १८ -का (r७५) पेहेइ हियाणुसासणं सुस्सूसइ तं च पुणो अहिलिए
नयमाणमएण माई विनयसमाहिआययट्ठिए।।४५५11-2 (१७) वउविहा खलु सुयसमाही भवइ तं जहा-सुयं मे मविस्सइ त्ति अल्झाइयव्वं मवइ, एगगचितो भविस्सामि त्ति अाइपव्ययं मवइ, अप्पाणंठावइस्सामि त्ति अज्झाइयब्वयं मवइ, ठिओ परंठायइस्सामि त्ति अज्झाइयव्ययं भवइ उत्यं पयं भवइ ।
(rani [भवइ अइत्य सिलोगो] १९-की (४७८) नाणमेगगचित्तोय, ठिओ य ठावइपरं ।
सुयाणि प अहिलित्ता, रओ सुयसमाहिए"॥५६॥-3 (१७९) चउबिहा खलु तवसमाही भवइ तं जहा-नो इहलोगट्टयाए तयमहिडेजाा, नो परलोगट्टयाए नय महिद्वेज्जा,नो कि- तिवनसदलासलोगठयाएतवमहिडिजा, नन्नत्य निजाष्ट्टयाए तवमहिहिमाचउत्यंपयंपवइ।१९।
(४८०) [भवइय इत्थसिलोगो (४८1) विविहगुणतवोरए, नियंभवइ निरासए निजरहिए।
तवसा घुणइ पुराणपावर्ग, जुत्तोसया तवसमाहिए" m५७|| (४८१) घउबिहा खलु आयारसमाही भवइ तं जहा-नो इहलोगठ्याए आयारमहिडिजा, नो परलोगठ्याए आयारमहिडिजा, नो कित्तिवत्रसइसिलोगठ्याए आयारमहिछिना, नात्य आरहंतेहिं हेऊहिं आयारमहिद्विआधउत्यं पयं मयइ २०
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