Book Title: Agam 42 Dasavevaliyam Mulsutt 03 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 37
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २ दसवे आलिय - [भवह य इत्य सिलोगो (४८२) जिणवयनरए अंतितिणे, पडिपुन्नाययमाययढ़िए आयारसमाहिसंवुडे, पवइ यदंते मावसंघए॥४५८1.6 (४८३) अभिगम चउरो समाहिओ, सुविसुद्धो सुसमाहिअप्पओ। विउलहिय सुहावहं पुणो, कुब्वइ सो पयखेममप्पणी ॥४५९।-8 (४८४) जाइमरणाओ मुधई, इत्थत्यं च चयइ सव्यसो।। सिद्धे वा भवइ सासए, देवे वा अप्परए महिहिए-त्ति बेमि ।। ४६०/t -7 नमवे अजयणेघउत्यो उद्देसो सम्पत्तो नममं मन्मयषं समत. दसम-अन्झयणं-स-भिक्खु (४८५) निक्खम्ममाणाइ य बुद्धवयणे, निच्चं चित्तसमाहिओ हविजा । इत्थीण वसं न यावि गच्छे, वंतं नो पडियायईजेस भिक्खू ॥४६१|| -1 (४८६) पुढविंन खणे नखणायए, सीओदगं न पिए नपियावए। अगणि सत्यं जहा सुनिसियं, तं न जलेन जलावए जे स भिक्खू ॥४६२।-2 (४८७) अनिलेण न वीए न यीयायए, हरियाणि न छिंदे न छिदावए। बीयाणि सया विवञ्जयंतो, सचित्तं नाहारएजे समिक्ख ॥४६३||-3 (४८८) वहणं तसथावराण होइ, पुढवितणकनिस्सियाणं। तम्हाउद्देसिन भुंजे नो विपएनपयावर जे सभिक्खू ॥४६४।-4 (४८९) रोइय नायपुत्तवयणे, अत्तसमें मन्नेज छप्पिकाए। पंच य फासे महब्बयाई, पंचासवसंवरेजेस भिक्खू (४९०) चत्तारि यमे सया कसाए, धुवजोगीहयेम बुद्धययणे।। अहणे निञ्जायसवायए, गिहिजोगं परिवजए जे स भिक्खू ॥४६६॥-8 (४९१) सम्मदिट्टी सया अमूढे, अत्यिहुनाणे तवे संजमे य। तवसा घुणइ पुराणपावर्ग, मणवयकायसुसंयुडे जे स भिक्खू ॥४६७|| -7 (१९२) तहेव असणं पाणगंवा, विविहं खाइमसाइमंलभित्ता। होही अठो सुए परे वा, तं न निहे ननिहावए जे स भिक्खू ॥४६८॥-8 (४९३) तहेय असणं पाणगं या, विविहं खाइमसाइमं लभित्ता । छंदिअ साहम्मियाण मुंजे, मुचा सल्झायरए जे सभिक्खू ||६९I-9 (४१४) न य घुग्गहियं कहं कहेआ, न य कुप्पे निहुइंदिए पसंते। संजमधुयजोगजुते, उवसंतेअविहेडए जे स भिक्खू |४७०|| (४९५) जो सहइ हु गामकंटए, अक्कोसपहारतजणाओ य। भयभेरवसंघसप्पहासे, समसुहदुक्खसहे य जेसभिक्खू ॥१७॥ (४९६) पडिमं पडिवजिया सुसाणे, नो भीयए पयमेरवाइंदिस्स। विविहगुणतबोरए पनिश्चं, न सरीरं चाभिकंखईजेस भिक्खू ॥४७२।। (४९७) असई वोसिठ्ठचत्तदेहे, अकुट्टे व हए वलूसिए वा । पुढविसमे मुनी हवेज्जा, अनिपाणे अकोउहल्ले जे स मिक्खू ॥४७३|| ||४५11-5 For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46