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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥४५४||-1 मापक-१, गोसो (६) तहेव डहरं च महल्लगंवा, इत्यी पुसंपव्यइअंगिहिवा नोहीलए नो वि यखंसाइजा, भंघकोहं चचएसपुझो ॥४५०||-12 (४६८) जे माणिआ सययं माणयंति, जत्तेण कन्नं व निवेसयंति।। ते माणएमाणरिहे तवस्सी, जिइंदिए सच्चरएस पुझो ॥५१॥ -13 (४६५) तेसिं गुरुण गुणसायराणं, सुनाण मेहावी सुभासियाई। घरे मुणी पंचरए तिगुत्तो, चउक्कसायावगए स पुओ ॥४५२|-14 (wo) गुरुमिह सययं पडियरिय मुनी, जिणमयनिउणे अभिगमकुसले । धुणियरयमलंपुरेकर्ड,भासुरमउलंगइंगयत्तिबेमि।। ॥५३॥ -16 नवमं अमपणेताओ उद्देसो सम्पतो. *च उ त्यो-उदे सो :(r७१)सुयं मे आउसं तेणं पगयया एवमक्खायं-इह खलु धेरेहि भगवंतेहिं चत्तारि विनयसमाहिशणा पत्नत्ता । कयरे खलु ते थेरेहि भगवंतेहिं चतारि विनयसमाहिठाणा पनत्ता इमे खलु ते घेरेहि भगवंतेहिं घत्तारि विनयसमाहिट्ठाणा पत्रत्ता तं जहा-विनयसमाही सुयसमाही, तबसपाही, आयारसमाही॥१६॥ (r७२) विणए सुए अतवे, आयारे निघ पंडिआ। अभिरामयंति अप्पाणं, जे पर्वति जिइंदिआ (१७३) चउब्विहा खलु यिनयसमाही मथही तं जहा-अनुसासिअंतो सुस्सूसइ, सम्म संपडियाइ, वेयमाराहयइ, नयभवइ अत्तसंपग्गहिए चउत्यं पयं भवइ।१७। (४७) [भयइइत्य सिलोगो।। १८ -का (r७५) पेहेइ हियाणुसासणं सुस्सूसइ तं च पुणो अहिलिए नयमाणमएण माई विनयसमाहिआययट्ठिए।।४५५11-2 (१७) वउविहा खलु सुयसमाही भवइ तं जहा-सुयं मे मविस्सइ त्ति अल्झाइयव्वं मवइ, एगगचितो भविस्सामि त्ति अाइपव्ययं मवइ, अप्पाणंठावइस्सामि त्ति अज्झाइयब्वयं मवइ, ठिओ परंठायइस्सामि त्ति अज्झाइयव्ययं भवइ उत्यं पयं भवइ । (rani [भवइ अइत्य सिलोगो] १९-की (४७८) नाणमेगगचित्तोय, ठिओ य ठावइपरं । सुयाणि प अहिलित्ता, रओ सुयसमाहिए"॥५६॥-3 (१७९) चउबिहा खलु तवसमाही भवइ तं जहा-नो इहलोगट्टयाए तयमहिडेजाा, नो परलोगट्टयाए नय महिद्वेज्जा,नो कि- तिवनसदलासलोगठयाएतवमहिडिजा, नन्नत्य निजाष्ट्टयाए तवमहिहिमाचउत्यंपयंपवइ।१९। (४८०) [भवइय इत्थसिलोगो (४८1) विविहगुणतवोरए, नियंभवइ निरासए निजरहिए। तवसा घुणइ पुराणपावर्ग, जुत्तोसया तवसमाहिए" m५७|| (४८१) घउबिहा खलु आयारसमाही भवइ तं जहा-नो इहलोगठ्याए आयारमहिडिजा, नो परलोगठ्याए आयारमहिडिजा, नो कित्तिवत्रसइसिलोगठ्याए आयारमहिछिना, नात्य आरहंतेहिं हेऊहिं आयारमहिद्विआधउत्यं पयं मयइ २० For Private And Personal Use Only
SR No.009772
Book TitleAgam 42 Dasavevaliyam Mulsutt 03 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages46
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 42, & agam_dashvaikalik
File Size1 MB
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