Book Title: Agam 42 Dasavevaliyam Mulsutt 03 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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मायण
||३२||-1
||३३1-2
॥३४॥3
।।३।।4
॥३६|| -5
॥३७||-8
॥३८1-7
॥३९1-8
||४||-9
(rs) अजयं घराणोअ, पाणभूयाई हिंसइ।
बंधइपावयंफम्मं तं से होइ कडुयं फलं अजयंचिट्ठमाणो उ, पाणमयाई हिंसइ । बंधइ पावयं कम्मं तं से होइ कडुयं फलं अजयं आसमाणो उ, पाणमयाई हिंसइ। बंधई पावयं कम्म, तं से होइ कडुयं फलं अजयंप्सयमाणो उ, पाणभूयाई हिंसइ । बंधइ पावयं कम्म, तं से होइ कडुयं फलं अजयं मुंजमाणो उ, पाणमूयाइ हिंसइ। बंधई पावयं कम्म, तंसे होइकधुपं फलं अजयं मासमाणो उ, आणभूयाई हिंसइ । बंधई पावयं कामं, तं से होइ कडुयं फलं कहं चरे कहं चिद्वे, कहमासे कई सए। कई मुंर्जतो, भासंतो, पावकम्मं न बंधा जयंचो जपंचिट्टे, जयमासे जयं सए। जयं भुजतो मासंतो, पावकम्मनबंधइ सव्वभूयप्पभूयस्स, सम्मं भूपाइपासओ।
पिहिआसवस्स दंतस्स, पावकमंन बंधाइ (५६) पढमं नाणं तओ दया, एवं चिट्ठइ सव्यसंजए।
अत्राणी किं काही, किंवा नाही इछेयपाधगं (५७) सोचा जाणाइ कालाणं, सोचा जाणइ पावगं ।
उमयं पिजाणइ सोधा, जव्यं तप्तमायरे जोजीवे विन याणइ, अजीवे विनयाणइ। जीवाजीवे अयाणतो, कांसो नाहीइ संजसं जोजीये वि वियाणांई, अजीवे वि वियाणइ। जीवाजीवेवियाणंतो, सोहुनाहीइ संजमं जयाजीयमजीवे य, दीवि एए वियागई। तथा गई बहुविहं, सय्यजीवाणजाणई जया गई बहुविहं, सव्वजीवाणजाणइ । तया पुनंच पायंच, बंयं मुखंच जाणई जया पुन्नं च पावंच, बंध मुक्खंचजाणई। तया-निविदए भोए, जे दिव्वेजेय माणुसे जया निविदए पाए, जे दिव्ये जेय माणुसे ।
तया चयइ संजोगं, समितरंबाहिरं (१४) जया चयइ संजोगं, सम्मित बाहिरै।
तया मुंडे पवित्ताणं, पव्वइए अणगारिपं
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॥२-11
||४३||-12
Hrell-13
||४५||-14
Iv६||-15
mul-18
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Ire||-18
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