Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 06
Author(s): Bhadrabahuswami, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

Previous | Next

Page 17
________________ जाणीने अने संग्रहीने ज हुं मारो "भारतीय जैन श्रमणसंस्कृति अने लेखनकला" नामनो ग्रंथ लखी शक्यो छु । खरुं जोतां ए ग्रंथलेखननो पूर्ण यश पूज्य गुरुदेवश्रीने ज घटे छ । शास्त्रसंशोधन-पूज्यपाद गुरुवरश्रीए श्रीप्रवर्तकजी महाराजश्रीना शास्त्रसंग्रहमांना नवा लखावेल अने प्राचीन ग्रंथो पैकी संख्याबंध महत्त्वना ग्रंथो अनेकानेक प्राचीन प्रत्यन्तरो साथे सरखावीने सुधार्या छ । जेम पूज्य गुरुदेव लेखनकळाना रहस्यने बराबर समजता हता एज रीते संशोधनकळामां पण तेओश्री पारंगत हता। संशोधनकळा, तेने माटेनां साधनो, संकेतो वगेरे प्रत्येक वस्तुने तेओश्री पूर्ण रीते जाणता हता । एमना संशोधनकळाने लगता पांडित्य अने अनुभवना परिपाकने आपणे तेओश्रीए संपादित करेल श्रीआत्मानंद-जैनअन्थरत्नमाळामा प्रत्यक्षपणे जोई शकीए छीए । जैन ज्ञानभंडारोनो उद्धार-पाटणना विशाळ जैन ज्ञानभंडारो एक काळे अति अव्यवस्थित दशामां पड्या हता। ए भंडारोनुं दर्शन पण एकंदर दुर्लभ ज हतुं, एमांथी वाचन, अध्ययन, संशोधन आदि माटे पुस्तको मेळववां अति दुष्कर हतां, एनी टीपो-लीस्टो पण बराबर जोईए तेवी माहिती आपनारां न हतां अने ए भंडारो लगभग जोईए तेवी सुरक्षित अने सुव्यवस्थित दशामां न हता। ए समये पूज्यपाद प्रवर्तकजी महाराज श्रीकान्तिविजयजी (मारा पूज्य गुरुदेव) श्रीचतुरविजयजी महाराजादि शिष्यपरिवार साथे पाटण पधार्या अने पाटणना ज्ञानभंडारोनी व्यवस्था करवा माटे कार्यवाहकोनो विश्वास संपादन करी ए ज्ञानभंडारोना सार्वत्रिक उद्धार- काम हाथ धर्यु अने ए कार्यने सर्वांगपूर्ण बनाववा शक्य सर्व प्रयत्नो पूज्यपाद श्रीप्रवर्तकजी महाराजश्रीए अने पूज्य गुरुदेव श्रीचतुरविजयजी महाराजश्रीए कर्या । आ व्यवस्थामा बौद्धिक अने श्रमजन्य कार्य करवामां पूज्यपाद गुरुदेवनो अकल्प्य फाळो होवा छतां पोते गुप्त रही ज्ञानभंडारना उद्धारनो संपूर्ण यशः तेओश्रीए श्रीगुरुचरणे ज समर्पित कर्यो छे । लीम्बडी श्रीसंघना विशाळ ज्ञानभंडारनी तथा वडोदरा-छाणीमा स्थापन करेल पूज्यपाद श्रीप्रवर्तकजी महाराजश्रीना अतिविशाळ ज्ञानभंडारोनी सर्वांगपूर्ण सुव्यवस्था पूज्य गुरुवरे एकले हाथे ज करी छे । आ उपरांत पूज्यप्रवर शान्तमूर्ति महाराजश्री १००८ श्रीहंसविजयजी महाराजश्रीना वडोदरामांना विशाळ ज्ञानभंडारनी व्यवस्थामां पण तेमनी महान् मदद हती। श्रीआत्मानंद जैन ग्रन्थरत्नमाला-पूज्य श्रीगुरुश्रीए जेम पोताना जीवनमां जैन ज्ञानभंडारोनो उद्धार, शास्त्रलेखन अने शास्त्रसंशोधनने लगतां महान् कार्यो कर्या छे ए ज रीते तेमणे श्रीआ. जै. ग्रं. र. मा.ना सम्पादन अने संशोधन- महान् कार्य पण हाथ धर्यु हतुं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 ... 424