Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 06
Author(s): Bhadrabahuswami, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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आ ग्रंथमाळा आज सुधीमां बधा मळीने विविध विषयने लगता नाना मोटा महत्वना नेवुं ग्रंथ प्रकाशित थया छे, जेमांनां घणाखरा पूज्य गुरुदेवे ज सम्पादित कर्या छे ।
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आ ग्रंथमाळामां नानामां नाना अने मोटामां मोटा अजोड महत्त्वना प्रन्थो प्रकाशित थया छे । नानां- मोटां संख्याबंध शास्त्रीय प्रकरणोनो समूह आ ग्रन्थमाळामां प्रकाशित थयो छे ए आ ग्रन्थमाळानी खास विशेषता छे । आ प्रकरणो द्वारा जैन श्रमण अने श्रमणीओने खूब ज लाभ थयो छे । जे प्रकरणोनां नाम मेळववां के सांभळवां पण एकाएक मुश्केल हता ए प्रकरणो प्रत्येक श्रमण- श्रमणीना हस्तगत थई गयां छे । आ ग्रन्थमालामां एकंदर जैन आगमो, प्रकरणो, ऐतिहासिक अने औपदेशिक प्राकृत, संस्कृत कथासाहित्य, काव्य, नाटक आदि विषयक विविध साहित्य प्रकाश पाम्युं छे । आ उपरथी पूज्यपाद गुरुदेवमां केटलं विशाळ ज्ञान अने केटलो अनुभव हतो ए सहेजे समजी शकाय तेम छे। अने ए ज कारणसर आ ग्रन्थमाळा दिनप्रतिदिन दरेक दृष्टिए विकास पामती रही छे ।
छेल्लामां छेल्ली पद्धतिए ग्रन्थोनुं संशोधन, संपादन अने प्रकाशन करता पूज्यपाद गुरुदेवे जीवनना अस्तकाळ पर्यंत अथाग परिश्रम उठाव्यो छे । निशीथसूत्रचूर्णि, कल्पचूर्णि, मलयगिरिव्याकरण, देवभद्रसूरिकृत कथारत्नकोश, वसुदेवहिंडी द्वितीयखंड आदि जेवा अनेक प्रासादभूत ग्रन्थोना संशोधन अने प्रकाशनना महान् मनोरथोने हृदयमां धारण करी स्वहस्ते एनी प्रेसकोपीओ अने एनुं अर्धसंशोधन करी तेओश्री परलोकवासी थया छे । अस्तु । मृत्युदेवे कोना मनोरथ पूर्ण थवा दीधा छे !!! |
आम छतां जो पूज्यपाद गुरुप्रवर श्रीप्रवर्त्तकजी महाराज, पूज्य गुरुदेव अने समस्त मुनिगणनी आशीष वरसती हशे-छे ज तो पूज्य गुरुदेवना सत्संकल्पोने मूर्त स्वरूप आपवा अने तेमणे चालु करेली ग्रन्थमाळाने सविशेष उज्ज्वल बनाववा यथाशक्य अल्प स्वल्प प्रयत्न हुं जरूर ज करीश ।
गुरुदेवनो प्रभाव - पूज्यपाद गुरुदेवमां दरेक बाबतने लगती कार्यदक्षता एटली बधी इती के कोई पण पासे आवनार तेमना प्रभावथी प्रभावित थया सिवाय रहेतो नहि । मारा जेवी साधारण व्यक्ति उपर पूज्य गुरुदेवनो प्रभाव पडे एमां कहेवापणुं ज न होय; पण पंडितप्रवर श्रीयुत् सुखलालजी, विद्वन्मान्य श्रीमान् जिनविजयजी आदि जेवी अनेकानेक समर्थ व्यक्तियो उपर पण ते ओश्रीनो अपूर्व प्रभाव पड्यो छे अने तेमनी विशिष्ट प्रवृत्तिनुं सजीव बीजारोपण अने प्रेरणा पूज्यपाद गुरुदेवना सहवास अने संसर्गथी प्राप्त थयां छे ।
जैन मंदिर अने ज्ञानभंडार वगेरेना कार्य माटे आवनार शिल्पीओ अने कारीगरो पण
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