Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 06 Author(s): Bhadrabahuswami, Chaturvijay, Punyavijay Publisher: Atmanand Jain SabhaPage 15
________________ १२ सारस्वत पूर्वार्ध अने चन्द्रिका उत्तरार्धनो प्रचार हतो ते मुजब तेओश्रीए तेनो अभ्यास कर्यो. अने ते साथ काव्य, वाग्भटालंकार, श्रुतबोध आदिनो पण अभ्यास करी लीधो । आ रीते अभ्यासमां ठीक ठीक प्रगति अने प्रवेश थया बाद पूर्वाचार्यकृत संख्याबन्ध शास्त्रीय प्रकरणो - जे जैन आगमना प्रवेशद्वार समान छे, -नो अभ्यास कर्यो । अने तर्कसंग्रह तथा मुक्तावलीनुं पण आ दरम्यान अध्ययन कर्यु । आ रीते क्रमिक सजीव अभ्यास अने विहार बन्ने य कार्य एक साथे चालतां रद्यां । उपर जणाववामां आव्युं तेम पूज्यपाद गुरुदेव श्रीचतुरविजयजी महाराज कमे क्रमे सजीव अभ्यास थया पछी ज्यां ज्यां प्रसंग मळ्यो त्यां त्यां ते ते विद्वान् मुनिवरादि पासे तेम ज पोतानी मेळे पण शास्त्रोनुं अध्ययन वाचन करता रहा । भगवान् श्री हेमचन्द्राचार्ये कधुं छे के - " अभ्यासो हि कर्मसु कौशलमावहति " ए मुजब पूज्यवर श्रीगुरुदेव शास्त्रीय वगेरे विषयमा आगळ वधता गया अने अनुक्रमे कोईनीये मदद सिवाय स्वतंत्र रीते महान् शास्त्रोनो अभ्यास प्रवर्त्तवा लाग्यो । जेना फलरूपे आपणे " आत्मानंद जैन ग्रन्थरत्नमाला " ने आजे जोई शकीए छीए । - शास्त्रलेखन अने संग्रह — विश्वविख्यातकीर्ति पुनीतनामधेय पंजाब देशोद्धारक न्यायांभोनिधि जैनाचार्य श्री विजयानंदमूरियरनी अवर्णनीय अने अखूट ज्ञानगंगाना प्रवाहनो वारसो एमनी विशाळ शिष्यसंपत्तिमां निराबाध रीते वहेतो रह्यो छे । ए कारणसर पूज्यप्रवर प्रातःस्मरणीय प्रभावपूर्ण परमगुरुदेव प्रवर्तकजी महाराजश्री १००८ श्रीकान्तिविजयजी महाराजश्रीमां पण ए ज्ञानगंगानो निर्मळ प्रवाह सतत् जीवतो वहेतो रह्यो छे । जेना प्रतापे स्थान स्थानना ज्ञानभंडारोमांत्री श्रेष्ठ श्रेष्ठतम शास्त्रोनुं लेखन, तेनो संग्रह अने अध्ययन आदि चिरकाळथी चालु हतां अने आज पर्यंत पण ए प्रवाह अविच्छिन्नपणे चालु ज छे । उपर जणावेल शास्त्रलेखन अने संग्रहविषयक सम्पूर्ण प्रवृत्ति पूज्यपाद गुरुवर श्रीचतुरविजयजी महाराजना सूक्ष्म परीक्षण अने अभिप्रायने अनुसरीने ज हम्मेशां चालु रह्यां तां । पुण्यनामधेय पूज्यपाद श्री १००८ श्रीप्रवर्त्तकजी महाराजे स्थापन करेला वडोदरा अने छाणीना जैन ज्ञानमंदिरोमांना तेओश्रीना विशाळ ज्ञानभंडारोनुं बारीकाईथी अवलोकन करनार एटलं समजी शकशे के, ए शास्त्रलेखन अने संग्रह केटली सूक्ष्म परीक्षापूर्वक करवामां आव्यो छे अने ते केवा अने केटला वैविध्यथी भरपूर छे । शास्त्रलेखन एशी वस्तु छे ए बाबतनो वास्तविक ख्याल एकाएक कोईने य नहि आवे । ए बाबतमां भलभला विद्वान् गणाता माणसो पण केवां गोथां खाई बेसे छे एनो ख्याक प्राचीन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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