Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 05 Author(s): Bhadrabahuswami, Chaturvijay, Punyavijay Publisher: Atmanand Jain SabhaPage 14
________________ प्रासंगिक निवेदन । आ बन्ने य प्रतिओ अमे उपरोक्त भंडारोनी संरक्षक हेमचन्द्रसभा द्वारा मेळवी छ । प्रतिओनी समविषमता प्रस्तुत ग्रन्थना प्रसिद्ध करवामां आवेला चार विभागोमां हस्तलिखित प्रतिओनी समविषमताने अंगे अमे जे हकीकत जणावी छे ते करतां आ विभागमा एने अंगे अमारे जुदुं ज कहेवानुं छे । पहेला चार विभागोमां संशोधनमाटे एकठी करेल प्रतो जुदा जुदा पाठभेदवाळी होई चार वर्गमां वहेंचाई जती हती, ज्यारे प्रस्तुत विभागथी शरू करी ग्रन्थ. समाप्ति पर्यंत ए वर्गभेद दूर थइ जई बधीये प्रतिओ मात्र वे वर्गमां वहेंचाई गइ छे~एक वर्ग ताटी० मो० ले. भा० डे० प्रतिओनो अने वीजो वर्ग कां० प्रतिनो । पहेला वर्गनी प्रतिओ आपसमां क्यारेक क्यारेक जुदी पड़ी जाय छे, तेम छतां पहेला त्रण उद्देशामां आ प्रतिओ पाठभेदना विषयमा जे प्रकारनुं समविषम वलण धरावती हती तेवु आ विभागथी नी रह्यं । आ विभागथी पाठभेदमाटे जुदं वलण फक्त कां० प्रति ज धरावे छे । आमां घणे ठेकाणे पंक्तिओनी पंक्तिओ अने टीकानी टीकाना अंशो पाठभेदवाळा तेमज वधारेना छे । आ दरेक पाठभेदो अने वधाराना अंशोने अमे ते ते ठेकाणे टिप्पणमा आप्या छे । कचित् कचित् निरर्थक जणाता पाठभेदोनी उपेक्षा पण करी छे, तेम छतां मोटे भागे पाठभेद आदिनी नोंध लेवा माटे अमे अप्रमत्त ज रह्या छीए । आ बधा उमेरेला अने परिवर्तित पाठभेदो पैकी जे पाठो अमने महत्वना लाग्या छे तेमने अमे मूळमां दाखल कर्या छे अने वीजी प्रतिना पाठोने टिप्पणमा आप्या छे, पण आयु कोई विरल विरल प्रसंगे ज बनवा पाम्युं छे। कां० प्रतिमा जे वधारानी पंक्तिओ अने टीकाअंशो छे ते मोटे भागे एवा छे के जेनुं ग्रन्थकारे पहेला अनेकवार व्याख्यान करी दीधुं छे । केटलाक उमेराओ लिंग-वचन-विभक्तिना फेरफारनी सूचनाविषयक छे तो केटलाक उमेराओ गाथामां आवता च वा तु अपि आदि अव्ययोनी अर्थसूचनाविषयक छ केटलाक उमेराओ गाथा आदिनी प्रतीकना उमेराने लगता छे तो केटलाक उमेराओ अमुक शब्दोने स्पष्ट रीते समजाववामाटे समानार्थक शब्दना उमेराने लगता छ । आ वधी वस्तु टीकाकारे प्रस्तुत ग्रन्थना व्याख्यानमां सेंकडो वखत कही दीधेल होवाथी कां० प्रतिमांना उपरोक्त उमेराओ, कशुं ज महत्त्व रहेतुं नथी । तेमज आ पाठोने अमारा पासेनी ताडपत्रीय वगेरे प्राचीनतम टीकाप्रतिओनो अने चूर्णि-विशेषचूर्णिनो पण टेको नथी, ए कारणथी अमे आ वधा पाठभेदोनी नोंध टिप्पणमां लेवार्नु उचित मान्युं छे । ___ अंतमा अमे एटली आशा राखीए छीए के प्रस्तुत संशोधनमा तेम ज पाठभेदोनी नोंध लेवामां अमे अतिघणी काळजी राखी छे ते छतां आ संबंधमां अमारी स्खलना जणाय तो विद्वान् वाचको क्षमा करे। निवेदक-गुरु-शिष्य मुनि चतुरविजय-पुण्यविजय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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