Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 05 Author(s): Bhadrabahuswami, Chaturvijay, Punyavijay Publisher: Atmanand Jain SabhaPage 18
________________ बृहत्कल्पस चम विभागमा विपयानुक्रम । १५ १३२९-४९ १३२९ १३३० १३३० १३३०-३२ गाथा . विषय ४९६९-५०५७ पाराञ्चिकप्रकृत सूत्र २ १ दुष्ट २ प्रमत्त अने ३ अन्योन्यकारक ए त्रण पाराश्चिक प्रायश्चित्तने योग्य छे ४९६९-७० पाराश्चिकप्रकृतनो पूर्वसूत्र साथे सम्बन्ध पाराश्विकसूत्रनी व्याख्या ४९७१ 'पाराश्चिक'पदनी व्युत्पत्ति अने शब्दार्थ ४९७२-७४ पाराश्चिकना आशातनापाराश्चिक अने प्रतिसेवना पाराश्चिक ए वे प्रकारो, तेमना सचारित्रि-अचारित्रिपणानुं स्वरूप अने परिणामनी विविधताने लई अपराधनी विविधता ४९७५-८४ १ आशातनापाराश्चिकनुं स्वरूप १ तीर्थकर २ प्रवचन ३ श्रुत ४ आचार्य ५ गणधर अने ६ महर्द्धिक, ए छनी आशातनानुं स्वरूप अने तेने लगतां प्रायश्चित्तो ४९८५-५०२६ २ प्रतिसेवनापाराश्चिक- स्वरूप ४९८५ प्रतिसेवनापाराश्चिकना १ दुष्ट २ प्रमत्त अने ३ अन्योन्यकारक ए त्रण प्रकारो ४९८६-५०१५ १ दुष्टपाराश्चिकनुं स्वरूप ४९८६-५००५ १ कषायदुष्टपाराश्चिकनुं स्वरूप ४९८६ दुष्टपाराश्चिकना कषायदुष्ट अने विषयदुष्ट ए बे प्रकारो अने कषायवुष्टनी स्वपक्षदुष्ट-परपक्षदुष्टपद द्वारा चतुभंगी ४९८७-९३ स्वपक्षकषायदुष्टनुं स्वरूप अने तेने लगतां १ सर्प पनाल २ मुखानंतक ३ उलूकाक्ष अने ४ शिख रिणी ए चार दृष्टान्तो ४९९४-९७ परपक्षकषायदुष्टादिनुं स्वरूप ४९९८-५००५ कषायदुष्टना वर्णनप्रसंगे सर्षपनालादि दृष्टान्तोमां दर्शावेला दोषोनो प्रसंग न आवे ते मादे आहारादिना निमंत्रण अने ग्रहणने लगती आचार्योए स्थापेली सामाचारी अने ते रीते न वर्त्तवाथी लागता दोपो १३३२ १३३२-३९ १३३२-३७ १३३२ १३३३-३४ १३३४-३५ १३३५-३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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