Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 05
Author(s): Bhadrabahuswami, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 19
________________ १६ गाथा ५००६-१५ ५०१६-२४ ५०१६ ५०१७-२४ ५०२५-२६ ५०२७-५७ ५०२७ ५०२८-३१ ५०३२-५७ ५०३२ ५०३३-३४ Jain Education International पंचम विभागनो विषयानुक्रम | विषय २ विषयदुष्टपाराचिकनुं स्वरूप स्वपक्ष-परपक्षदुष्टपदद्वारा विषय दुष्टपाराचिकनी चतुर्भंगी, तेने लगतां उपाश्रयपाराश्चिक, कुलपाराञ्चिक, निवेशनपारा०, पाटकपारा०, शाखापा०, ग्रामपा०, देशपा०, राज्यपा०, कुलपा०, गणपा०, संघपाराचिक आदि पाराविक प्रायश्चित्तो, तेना दोषो अने विषयदुष्टने क्यांथी क्यांधी पाराचिक करवो तेनुं निरूपण २ प्रमत्तपाराञ्चिकनुं स्वरूप पांच प्रमाद पैकी प्रस्तुतमां 'प्रमाद' पदधी स्त्यानार्द्धनिद्रानो अधिकार स्त्यानर्द्धिप्रमत्तपाराञ्चिकने लगतां १ पुद्गल २ मोदक ३ फरुसक- कुंभार ४ दन्त ५ वटशालाभंजन ए पांच दृष्टान्तो अने तेने लिंगपाराचिक करवामादेनो तथा तेने परित्याग करवामाटेनो विधि ३ अन्योन्यकारकपाराञ्चिकनुं स्वरूप अन्योन्यकारक स्वरूप अने तेने अंगे लिङ्गपारांचिक प्रायश्चित्त पाराचिकनुं स्वरूप दुष्ट, प्रमत्त अने अन्योन्यसेवी पैकी कोने कया प्रकारनुं पाराचिक प्रायश्चित्त आपवामां आवे छे तेनुं वर्णन उपाश्रय-कुल- निवेशनादिपाराञ्चिक तथा लिङ्गपाराचिकप्रायश्चित्तने योग्य अपराधो तपः पाञ्चिकनुं स्वरूप अने तेने योग्य व्यक्तिना गुणोनुं कथन कालपाराञ्चिकनुं स्वरूप कालपाराञ्चिकनी कालमर्यादा कालपाराञ्चिको स्वगणमांथी नीकळवानो विधि अने परगणमां जवानां कारणो For Private & Personal Use Only पत्र १३३७-३९ १३३९-४२ १३३९ १३३९-४२ १३४२ १३४२-४९ १३४२ १३४२-४३ १३४३-४९ १३४३ १३४३-४४ www.jainelibrary.org

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