Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 05 Author(s): Bhadrabahuswami, Chaturvijay, Punyavijay Publisher: Atmanand Jain SabhaPage 16
________________ ।। अर्हन् । बृहत्कल्पसूत्र पंचम विभागनो विषयानुक्रम । गाथा पत्र १३०७-२९ १३०७-८ १३०८-१० १३१०-११ चतुर्थ उद्देश। विषय ४८७७-४९६८ अनुदातिकप्रकृत सूत्र १ १ हस्तकर्म, २ मैथुन अने ३ रात्रिभोजन ए त्रण स्थानो अनुदातिक अर्थात् गुरुप्रायश्चित्तने योग्य छे ४८७७-८१ चतुर्थ उद्देशनो अने चतुर्थ उद्देश प्रथम सूत्रनो तृतीय उद्देश साथे मेळ-संवन्ध अनुद्धातिकसूत्रनी व्याख्या ४८८२-८९ 'एक' अने 'त्रिक'पदना निक्षेपो ४८९०-९३ 'उद्धात' अने 'अनुद्धात' पदना निक्षेपो ४८९४ अनुदातिकप्रायश्चित्तने योग्य त्रण स्थानो ४८९५-४९४० १ हस्तकर्मनुं स्वरूप ४८९५-९६ 'हस्त'पदना निक्षेपो ४८९७-४९४० 'कर्म'पदना निक्षेपो ४८९७ द्रव्यकर्मनुं स्वरूप ४८९८ भावकर्मना संक्लिष्ट असंक्लिष्ट वे भेदो ४८९९-४९११ असंक्लिष्ट भावहस्तकर्मना १ छेदन २ भेदन ३ घर्षण ४ पेषण ५ अभिघात ६ स्नेह ७ काय ८ क्षार ए आठ प्रकारो, तेनुं स्वरूप अने तेने लगता दोषो अने अपवादो । ४९१२-४० संक्लिष्ट भावहस्तकर्मना प्रकारो ४९१२ संक्लिष्टहस्तकर्मना प्रकारो ४९१३-१४ वसतिविषयक संक्लिष्टहस्तकर्मना प्रकारो ४९१५-१९ वसतिविषयक रूपदोपर्नु स्वरूप, रूपना सचित्त अचित्त वे प्रकारो, तेने लगना दोषो अने प्रायश्चित्तो १३११-२२ १३११ १३१२-२२ १३१२ १३१२ १३१२-१५ १३१५-२२ १३१५ १३१५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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