Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 05 Author(s): Bhadrabahuswami, Chaturvijay, Punyavijay Publisher: Atmanand Jain SabhaPage 13
________________ १० ॥ अहम् ॥ प्रासंगिक निवेदन । नियुक्ति-भाष्य-वृत्तिसहित बृहत्कल्पसूत्रना आ अगाउ अमे चार विभाग प्रसिद्ध करी चूक्या छीए । आजे एनो पांचमो विभाग प्रसिद्ध करवामां आवे छे। आ विभागमा वृहत्कल्पसूत्रना चोथा पांचमा उद्देशानो समावेश करवामां आव्यो छे। आ विभागनी समाप्ति साथे प्रस्तुत ग्रन्थना मनाता ४२६०० श्लोक प्रमाण पैकी लगभग ४०००० श्लोक सुधीनो अंश समाप्त थाय छे । । __ प्रस्तुत विभागना संशोधनमा, चोथा विभागना "प्रासङ्गिक निवेदन"मां जणावेल तृतीयखंडनी छ प्रतिओ उपरांत मो० ले० प्रतिना चतुर्थखंडनी प्रतिओनो पण अमे उपयोग कर्यो छे, जेनो परिचय आ नीचे आपवामां आवे छे । चतुर्थखंडनी मो० ले० प्रतिओ। १ मो० प्रति-आ प्रति पाटण-सागरगच्छना उपाश्रयमा रहेला शेठ मोंका मोदीना ज्ञानभंडारनी छे । एनां पानां ८२ छ । दरेक पानानी पूठीदीठ सत्तर सनर लीटीओ छे अने ए दरेक लीटीमां ६९-७६ अक्षरो छ । प्रतिनी लंबाई १३॥ इंचनी अने पहोळाई ५। इंचनी छे । प्रतिना अंतमा लेखकनी पुष्पिका आदि कझुंय नी; ते छतां आ ग्रंथ एक ज लेखकना हाथे लखाएल होई तेना पहेला वीजा खंडो अनुक्रमे संवत १५७३-७४ मां लखाएला होवाथी आ चोथो खंड संवत १५७५-७६ मां लखाएल हशे एमां जरा पण शंकाने स्थान नथी । कारण के-लेखके आ प्रतिनो पहेलो खंड संवत १५७३ ना अपाड महिनामा पूर्ण कर्यो छे अने एनो बीजो खंड संवत १५७४ ना भाद्रवा महिनामां समाप्त कर्यो छे; एटले जो लेखके आ ज गतिए प्रस्तुत प्रन्थना त्रीजा चोथा खंडो लख्या होय तो संभव छे के-आ त्रीजा चोथा खंडो अनुक्रमे संवत १५७५-७६ मा लखाएला होवा जोइए । आ प्रति जीर्णप्राय स्थितिमा छ । प्रति मोदीना भंडारनी होई एनी अमे मो० संज्ञा राखी छे । २ ले० प्रति-आ प्रति पाटण-सागरगच्छना उपाश्रयमा रहेला लेहेरु वकीलना ज्ञानभंडारनी छे । एनां पानां ७७ छ । दरेक पानानी पूठीदीठ सत्तर सत्तर लीटीओ छे अने दरेक लीटीमा ७४-७९ अक्षरो छ । प्रतिनी लंबाई १३ इंचनी अने पहोळाई ५ इंचनी छे। प्रतिना अंतमा लेखकनी पुष्पिका वगेरे कशुं य नथी; ते छतां आ ग्रंथ एक ज लेखकना हाथे लखाएल होई तेनो प्रथमखंड संवत १५७८ ना आसो मासमां लखाएल होवाथी वाकीना वीजा खंडो ते पछीना वर्षमा लवाएला छे एमां लेश पण शंकाने स्थान नथी । प्रतिनी स्थिति जीर्णप्राय छ । प्रति लहर, वकीलना भंडारनी होई एनी अमे ले० संज्ञा राखी छे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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