Book Title: Agam 35 Bruhatkalpa Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ आगम सूत्र ३५, छेदसूत्र-२, 'बृहत्कल्प' उद्देशक/सूत्र गण से दूसरे गण में जाना, वर्षावास रहना न कल्पे । जहाँ वो अपने बहुश्रुत या बहु आगमज्ञ आचार्य या उपाध्याय को देखे वहाँ उनके पास आलोचना-प्रतिक्रमण, निंदा-गर्दा करे, पाप से निवृत्त हो, पाप फल से शुद्ध हो, पुनः पापकर्म न करने के लिए प्रतिज्ञाबद्ध हो, यथायोग्य तपकर्म प्रायश्चित्त स्वीकार करे, लेकिन वो प्रायश्चित्त श्रुतानुसार दिया गया हो तो उसे ग्रहण करना लेकिन श्रुतानुसार न दिया हो तो ग्रहण न करना । यदि वो कलह करनेवाला श्रुतानुसार प्रस्थापित प्रायश्चित्त स्वीकार न करे तो उसे गण से बाहर नीकाल देना। सूत्र-१३६ जिस दिन परिहारतप स्वीकार किया हो तो उस दिन परिहार कल्प में रहनेवाले भिक्षु को एक घर से विपुल सुपाच्य आहार दिलाना आचार्य-उपाध्याय को कल्पे उसके बाद उसे अशन आदि आहार एक बार या बार-बार देना न कल्पे । लेकिन उसे खड़ा करना, बिठाना, बगल बदलना, उसके मल-मूत्र, कफ परठना, मल-मूत्र लिप्त उपकरण को शुद्ध करना आदि में से किसी एक तरह की वैयावच्च करना कल्पे । यदि आचार्य-उपाध्याय ऐसा जाने कि यह ग्लान, भूखे, प्यासे तपस्वी दूबले और थककर गमनागमन रहित मार्ग में मूर्छित होकर गिर जाएंगे तो उसे अशन आदि आहार एक बार या बार-बार देना कल्पे । सूत्र-१३७-१३८ गंगा, जमुना, सरयू, कोशिका, मही यह पाँच महानदी समुद्रगामिनी हैं, प्रधान हैं, प्रसिद्ध हैं । यह नदियाँ एक महिने में एक या दो बार ऊतरना या नाँव से पार करना साधु-साध्वी को न कल्पे, शायद ऐसा मालूम हो कि कुणाला नगरी के पास ऐरावती नदी एक पाँव पानी में और एक पाँव भूमि पर रखकर पार की जा सकती है तो एक महिने में दो या तीन बार भी पार करना कल्पे, यदि वो मुमकीन न हो तो एक महिने में दो या तीन बार ऊतरना या नाँव से पार करना न कल्पे । सूत्र- १३९-१४२ जो उपाश्रय सूखा घास और घास के ढ़ग, चावल आदि का भुंसा और उसके ढ़ग, पाँच वर्णीय लील-फूल, अंड़, बीज, कीचड़, मकड़ी की जाल रहित हो लेकिन उपाश्रय की छत की ऊंचाई कान से भी नीची हो तो ऐसे उपाश्रय में साधु-साध्वी को शर्दी-गर्मी में रहना न कल्पे, लेकिन कान से ऊंची छत हो तो कल्पे, यदि खड़ी हुई व्यक्ति सीधे दो हाथ ऊपर करे तब उस हाथ की ऊंचाई से ज्यादा छत नीची हो तो उस उपाश्रय में वर्षा में रहना न कल्पे, यदि छत ऊंची हो तो कल्पे । उद्देशक-४-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(बृहत्कल्प)" आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 14

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20