Book Title: Agam 35 Bruhatkalpa Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ३५, छेदसूत्र-२, 'बृहत्कल्प
उद्देशक/सूत्र सूत्र - १६५-१६६
साध्वी को गाँव यावत् संनिवेश के बाहर हाथ ऊपर करके, सूर्य के सामने मुँह करके, एक पाँव पर खड़े रहकर आतापना लेना न कल्पे, लेकिन उपाश्रय में कपड़े पहनी हुई दशा में दोनों हाथ लम्बे करके पाँव समतोल रखकर खड़े होकर आतापना लेना कल्पे । सूत्र - १६७-१७८
साध्वी को इतनी बातें न कल्पे-१. ज्यादा देर कायोत्सर्ग में खड़ा रहना, २. भिक्षुप्रतिमा धारण करना, ३. उत्कटुक आसन पर बैठना, ४. दोनों पाँव पीछे के हिस्से को छू ले, गौ की तरह, दोनों पीछे के हिस्से के सहारे बैठकर एक पाँव हाथी की सूंड की तरह ऊपर करके, पद्मासन में, अर्ध पद्मासन में पाँच तरीके से बैठना, ५. वीरासन में बैठना, ६. दंडासन में बैठना, ६. लंगड़ासन में बैठना, ७. अधोमुखी होकर रहना, ८. उत्तरासन में रहना, ९. आम्रकुब्जिकासन में रहना, ९. एक बगल में सोने का अभिग्रह करना, १०. गुप्तांग ट्रॅकने के लिए चार अंगूल चौड़ी पट्टी जिसे 'आकुंचन पट्टक' कहते हैं वो रखना या पहनना (यह दश बातें साध्वी को न कल्पे ।) सूत्र - १७९
साधु को आकुंचन पट्टक रखना या पहनना कल्पे । सूत्र- १८०-१८१
साध्वी को "सावश्रय'' आसन में खड़े रहना या बैठना न कल्पे लेकिन साधु को कल्पे (सावश्रय यानि जिसके पीछे सहारा लेने के लिए लकड़ा आदि का तकिया लगा हो वैसी कुर्सी आदि।) सूत्र- १८२-१८३
साध्वी को सविषाणपीठ (बैठने की खटिया, चोकी आदि) या फलक पर खड़े रहना, बैठना न कल्पे । साधु को कल्पे।
सूत्र-१८४-१८५
साध्वी को गोल नालचेवाला तुंबड़ा रखना या इस्तमाल करना न कल्पे, साधु को कल्पे । सूत्र- १८६-१८७
साध्वी को गोल (दंडी की) पात्र केसरिका (पात्रा पूजने की पुंजणी) रखनी या इस्तमाल करनी न कल्पे, साधु को कल्पे। सूत्र-१८८-१८९
___ साध्वी को लकड़े की (गोल) दंडीवाला पादपौंछन रखना या इस्तमाल करना न कल्पे, साधु को कल्पे । सूत्र-१९०
साधु-साध्वी उग्र बीमारी या आतंक बिना एक दूसरे का मूत्र पीना या मूत्र से एक दूसरे की शुद्धि करना न कल्पे। सूत्र- १९१-१९३
साधु-साध्वी को परिवासित (यानि रातमें रखा हुआ या कालातिक्रान्त ऐसे-१. तल जितना या चपटी जितना भी आहार करना और बूंद जितना भी पानी पीना, २. उग्र बीमारी या आतंक बिना अपने शरीर पर थोड़ा या ज्यादा लेप लगाना, ३. बीमारी या आतंक सिवा तेल, घी, मक्खन या चरबी लगाना या पिसना वो सब काम न
कल्पे
सूत्र - १९४
परिहारकल्प स्थित (परिहार तप करते) साधु यदि वैयावच्च के लिए कहीं बाहर जाए और वहाँ परिहार
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(बृहत्कल्प)" आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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