Book Title: Agam 35 Bruhatkalpa Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ३५, छेदसूत्र-२, "बृहत्कल्प
उद्देशक/सूत्र
उद्देशक-५ सूत्र-१४३-१४६
किसी देव या देवी स्त्रीरूप की विकुवर्णाकर साधु को और किसी देवी या देव पुरुष रूप विकुर्वकर साध्वी को आलिंगन करे और वो साधु या साध्वी स्पर्श का अनुमोदन करे तो मैथुन सेवन के दोष का हिस्सेदार होता है। और अनुद्घातिक चातुर्मासिक परिहार स्थान प्रायश्चित्त का भागी बनता है। सूत्र- १४७
जो किसी साधु कलह करे और उस कलह को उपशान्त किए बिना दूसरे गण में संमिलित होकर रहना चाहे तो उसे पाँच अहोरात्र का पर्याय छेद करना कल्पे और उस भिक्षु को सर्वथा शान्त-प्रशान्त करके पुनः उसी गण में वापस भेजना योग्य है । या गण की संमति के अनुसार करना योग्य है। सूत्र-१४८-१५१
जो साधु सूर्योदय के बाद और सूर्यास्त के पहले भिक्षाचर्या करने के प्रतिज्ञावाले हो वो समर्थ, स्वस्थ और हमेशा प्रतिपूर्ण आहार करते हो या असमर्थ अस्वस्थ और हमेशा प्रतिपूर्ण आहार न करते हो तो ऐसे दोनों को सूर्योदय सूर्यास्त हुआ कि नहीं ऐसा शक हो तो भी सूर्योदय के पहले या सूर्यास्त के बाद जो आहार मुँह में, हाथ में या पात्र में हो वो परठवे और मुख आदि की शुद्धि कर ले तो जिनाज्ञा का अतिक्रमण नहीं होता । वो आहार खुद करे या दूसरे साधु को दे तो उसे रात्रिभोज का दोष और अनुद्घातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान प्रायश्चित्त आता है सूत्र-१५२
यदि कोई साधु-साध्वी को रात्रि या संध्या के वक्त पानी और भोजन सहित ऊबाल आए तो उसे यूँककर वस्त्र आदि से मुँह साफ कर ले तो जिनाज्ञा का उल्लंघन नहीं होता । लेकिन यदि उछाला या उद्गाल को नीगल जाए तो रात्रि भोजन सेवन का दोष लगे और अनुद्घातिक-चातुर्मासिक परिहारस्थान प्रायश्चित्त का हिस्सेदार बने । सूत्र - १५३-१५४
कोई साधु-साध्वी आहार के लिए गृहस्थ के घर में प्रवेश करे और पात्र में दो इन्द्रिय आदि जीव या सचित्त रज हुई देखे तो यदि उसे नीकालना या शोधना मुमकीन हो तो नीकाले या शोधन करे, यदि नीकालना या शोधन करना मुमकीन न हो तो वो आहार खुद न खाए, दूसरों को न दे, लेकिन किसी एकान्त अचित्त पृथ्वी का पडिलेहण या प्रमार्जन करके वहाँ परठवे, उसी तरह पात्र में उष्ण आहार हो और उसके ऊपर पानी, पानी के कण या बूंद गिरे तो उस आहार का उपभोग करे लेकिन पूर्वगृहीत आहार ठंडा हो और उस पर पानी, पानी के कण बूंद गिरे तो वो आहार खुद न खाए, दूसरो को न दे लेकिन एकान्त अचित्त पृथ्वी का पड़िलेहण प्रमार्जन करके वहाँ परठवे । सूत्र- १५५-१५६
कोई साध्वी रात के या सन्ध्या के वक्त मल-मूत्र का परित्याग करे या शुद्धि करे उस वक्त किसी पशु के पंख के द्वारा साध्वी की किसी एक इन्द्रिय को छु ले, या साध्वी के किसी छिद्र में प्रवेश पा ले और वो स्पर्श या प्रवेश सुखद है (आनन्ददायक है) ऐसी प्रशंसा करे तो उसे हस्तकर्म का दोष लगता है और वो अनुद्घातिक मासिक प्रायश्चित्त की हिस्सेदार होती है। सूत्र-१५७-१६१
साध्वी का अकेले-१. रहना, २. आहार के लिए गृहस्थ के घर आना-जाना, ३. मल-मूत्र त्याज्य या स्वाध्याय भूमि आना-जाना, ४. एक गाँव से दूसरे गाँव विचरण करना, ५. वर्षावास रहना न कल्पे । सूत्र - १६२-१६४
साध्वी का नग्न होना, पात्र रहित (कर-पात्री) होना, वस्त्ररहित होकर कायोत्सर्ग करना न कल्पे ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(बृहत्कल्प)" आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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